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मजबूत नायिका का छरहरी काया में होना जरूरी क्यों?

महिलाओं के चित्रण के मामले में हमारी फिल्में दो कदम आगे बढ़ने की कोशिश करती हैं लेकिन फिर एक कदम पीछे खींच लेती हैं। आज कई फिल्मों में महिलाएं अपनी पारंपरिक भूमिका से अलग तो दिखाई जाती हैं लेकिन उनके लिए सुंदरता के मानक वही परंपरागत रहते हैं। फिल्मों में नायिकाओं

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सिर्फ मर्दों के लिए बनती हैं फिल्में बेचारी, असहाय और आइटम होती हैं फिल्मों में लड़कियां

असल जिंदगी में भेदभाव और शोषण झेल रहा स्त्री वर्ग फिल्मों की काल्पनिक कहानियों में भी इस दंश से बच नहीं पाता. फिल्मों में दिखाए जाने वाले सीन और किरदार में लड़कियां उसी परंपरागत भूमिका में नजर जाती हैं जिसे कदम-कदम पर एक मर्द की आवश्यकता होती है. कहानी पुरुष

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महिलाओं की छवि बिगाड़ते टीवी सीरियल्स

अधिकांश टीवी सिरियल्स महिलाओं की छवि को दो स्तर पर नुकसान पहुंचा रहे हैं. एक तो त्याग, बलिदान के नाम पर उनके विकास को अवरूद्ध करने की कोशिश की जाती है, तो दूसरी उन्हें षडयंत्रकारी और स्वार्थी बताकर पूरी महिला जाति की छवि को धूमिल किया जाता है. इन  नाटकों

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