स्त्री से होने वाले भेदभाव की जड़ें हमारे समाज में इतने गहरे समाईं हैं कि हमारी जबान पर बैठी कहावतों में भी वो पक्षपात झलकता है। बरसों से चली आ रहीं कई कहावतों में स्त्री के साथ गैरबराबरी की गई है। कहावतों के माध्यम से उसे बदनाम किया गया है और मजाक बनाया गया है। ऐसी कहावतें किसी एक भाषा, बोली या धर्म में नहीं हैं बल्कि हर जगह हैं। यहां हम ऐसी ही कुछ कहावतों के बारे में बता रहे हैं:
जर, जोरू और जमीन जोर की, नहीं तो किसी और की
इस कहावत का मतलब है धन, जमीन और पत्नी को अपना बनाए रखने के लिए ताकत की जरूरत है, वरना कोई और इन्हें छीन लेगा। यह कहावत अत्यधिक प्रचलित है। इस पर गौर करें तो ताकत की बात धन-सम्पत्ति पर तो ठीक लगती है क्योंकि सम्पत्ति एक निर्जीव चीज है उसको संभालने के लिए ताकत और दिमाग की जरूरत पड़ती है वरना कोई और इन्हें हथिया सकता है। पर पत्नी तो इंसान है फिर भी कहावत में औरत पर बल प्रयोग कर स्वामित्व बनाए रखने की बात कही गई है। उसे प्यार देकर या अच्छे व्यवहार से अपना बनाने को नहीं कहा गया। ताकत का इस्तेमाल करके सामान को अपने पास रखा जा सकता है लेकिन इंसान को ही। अगर इंसान के साथ ताकत का उपयोग यानी जबरदस्ती की जाती है तो उसकी भावनाएं कुचल जाती हैं।
यह कहावत भी औरत को सम्पत्ति मानते हुए उसको भावनाहीन मानती है। उसके लिए प्यार और लगाव को वर्जित मानती है। दरअसल, हमारे पुरुषवादी समाज में औरत को स्वतंत्रता नहीं दी गई है। किसी न किसी पुरुष को उसका मालिक बनाया गया है। इसलिए पुरुष को अपनी पत्नी को काबू में रखने की सलाह दी जाती है। अक्सर कहा भी जाता है कि ’नामर्द है अपनी औरत भी संभाली नहीं जाती’ या ’औरत को ज्यादा खुला छोड़ना ठीक नहीं, लगाम कस कर रखनी चाहिए’। वहीं, हमारे समाज में पति को डरा कर रखने की बात नहीं की जाती है। पति को अपना बनाए रखने के लिए पत्नी को उसे रिझाने और सेवा करके खुश रखने की सलाह दी जाती है ताकि वह दूसरी औरत के पास न जाए। इस तरह तो पत्नी को खुश रखने के लिए भी ताकत के बजाए प्यार का इस्तेमाल होना चाहिए। यह कहावत स्त्री वर्ग के लिए बेहद अपमानजनक है।
मकान और दुल्हन को जितना सजाओ उतने सुंदर लगते हैं
यह कहावत हर जगह प्रचलित नहीं है लेकिन कई जगहों पर इस्तेमाल की जाती है। इसका उपयोग इस संदर्भ में होता है कि जितना अधिक पैसा हो मकान और दुल्हन को उतना सजाकर सुंदर बनाया जा सकता है। यह सही है कि पैसे से महंगे और आकर्षक समान खरीदकर कोई भी चीज या इंसान सुंदर बन सकता है। आपत्ति यह है कि इस कहावत में मकान और दुल्हन के जरिए औरत की तुलना सामान से की गई है। औरत को भी एक तरह से पुरुष की सम्पत्ति माना गया है।
ध्यान दें तो दुल्हन ही क्यों दुल्हा भी जितना सजाओ उतना सुंदर लग सकता है। पुरुष भी कई सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग कर खुद को बहुत सुंदर बनाए रखते हैं। शादियों में दुल्हे भी एक से एक मंहगी शेरवानी, सहरा, जेवर और जूते पहनकर अच्छे दिखना चाहते हैं। वह भी ब्यूटी पार्लर में ब्लीच, आईब्रो, फेशियल कराते हैं। परंपरागत रूप से पुरुषों के लिए तय किए गए सजावट के सामानों का उपयोग कर वे भी बेहद खूबसूरत दिखते हैं। फिर भी इस कहावत में केवल दुल्हन की बात की गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मकान की तुलना पुरुष से करने का मतलब है, पुरुष को औरत की संपत्ति करार देना। हमारा समाज इसके उल्टा विचार रखता है इसलिए कहावतों में स्त्री की तुलना वस्तु से की गई है।
शूद्र, गंवार, ढोल, पशु, नारी, ये तो हैं ताड़ना के अधिकारी
यह चैपाई बहुत प्रचलित है और लंबे समय से उपयोग की जाती रही है। इसका अर्थ है कि नीची जाति के लोग, अनपढ़ व्यक्ति, ढोल, जानवर और नारी, ये सभी पीटने के लायक हैं। इसके बिना ये बात नहीं मानते। यहां भी स्त्री से कोई बात मनाने के लिए उसे मारने-पीटने की बात कही गई है। उसे जानवर और ढोल यानी वस्तु के बराबर दर्जा दिया गया है। स्त्री को इंसान माना ही नहीं गया है। चैपाई के अनुसार स्त्री को वो इज्जत और प्यार नहीं मिलना चाहिए जो किसी इंसान को दिया जाता है।
जातिगत रूप से भी यह चैपाई भेदभावपूर्ण है। इसमें कहीं भी पुरुषों या ऊंची जाति के पुरुषों का जिक्र नहीं है। कहावत में पुरुष को स्त्री को पीटने का अधिकार दिया गया है। स्त्री को प्यार देने से उसके बिगड़ने या सिर चढ़ जाने की मान्यता रखते हुए उसे केवल डंडे के लायक माना गया है। जबकि पुरुष को इंसान मानते हुए उसे मारने-पीटने की सलाह नहीं दी गई है।
औरतों के पेट में बात नहीं पचती
यह कहावत तो शाश्वत सत्य मानकर महाभारत के समय से चलाई जा रही है। बहुत अतार्किक है कि युधिष्ठिर का श्राप था और इस कारण अभी तक औरतें किसी बात को छुपा नहीं पातीं। इसका मतलब है कि औरतों में विश्वसनीयता नहीं होती। उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और वह चुगलखोर होती हैं। हम बहुत आसानी से किसी लड़की या औरत को अक्सर ताना मार देते हैं की औरतों को कुछ बताना नहीं चाहिए, उनके पेट में बात पचती ही नहीं है। यह सरासर महिलाओं को बदनाम करना है।
विश्वसनीयता एक व्यक्तिगत गुण हैं। महिला और पुरुष दोनों ही भरोसेमंद और धोखेबाज हो सकते हैं। महिलाओं को इसका अलग से प्रमाण देने की जरूरत नहीं है। अपने आसपास के लोगों पर गौर करें तो यह बात स्वतः स्पष्ट हो जाती है। हम खुद देखते हैं कि कितने ही मर्द इधर की बात उधर करते हैं, भरोसा तोड़ते हैं और आॅफिस जैसी जगहों पर जमकर राजनीति करते हैं। ऐसे पुरुषों को कुछ भी गोपनीय बात बताना नुकसान ही करता है। इसमें भी संदेह नहीं कि ऐसी महिलाएं भी होती हैं लेकिन केवल महिलाएं नहीं होतीं। इस अवगुण को सिर्फ महिलाओं के साथ जोड़ना उन्हें बदनाम करने की साजिश है।