Home > स्त्री विमर्श > भाईचार और महापुरुष, क्या इन शब्दों में छुपा भेदभाव जानते हैं आप?

भाईचार और महापुरुष, क्या इन शब्दों में छुपा भेदभाव जानते हैं आप?

do-you-know-about-gender-discrimination-behind-these-words
do-you-know-about-gender-discrimination-behind-these-words

हमारे समाज में स्त्रियों से भेदभाव केवल व्यवहारिक तौर पर नहीं है बल्कि इसकी जड़ इतनी गहरी समाई है कि अक्सर बोले और लिखे जाने होने वाले शब्दों मेें भी यह अंतर झलकता है। इतना ही नहीं इस भेदभाव को इस तरह हमारे जीवन में शामिल कर दिया गया है कि हम इसे पहचान भी नहीं पाते। ऐसे ही कुछ शब्दों पर नारी उत्कर्ष के इस अंक में चर्चा की जा रही है:

भाईचारा

भाईचारा शब्द से हम सब वाकिफ हैं। इस शब्द का उपयोग कई बार भाषणों, गानों और आपसी बातचीत में होता है। अक्सर सिखाया भी जाता है कि प्रेम शांति और भाईचारे से रहना चाहिए। भाईचारे का मतलब है भाईयों जैसा प्यार। भाईयों के बीच जो प्यार और लगाव होता है वो सबके बीच रहे यानी हम दूसरों को भी अपना भाई माने। इस शब्द से सीख तो अच्छी मिलती है लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग लैंगिक भेदभाव को जन्म देता है। क्योंकि भाईचारे की तरह बहनआपा, यानी की बहनों के जैसा प्यार, शब्द का इस्तेमाल न के बराबर होता है। आपस में भाईचार ही क्यों बहनापा भी होना चाहिए।

सवाल उठता है कि क्या प्यार और लगाव सिर्फ भाईयों में ही होता है? बहनें क्या एक-दूसरे से नफरत करती हैं? तो क्यों बहनों जैसा प्यार बनाए रखने की बात नहीं की जाती? इसमें कोई दो राय नहीं कि बहनों के बीच भी भाईयों से कम प्यार नहीं होता। ऐसे में बहनों के प्यार को भी उदाहरण बनाया जा सकता है। इसी तरह भाईचारे का अंग्रेजी अनुवाद ब्रदरहुड (Brotherhood) भी बहनापा यानी सिस्टरहुड (Sisterhood) की तुलना में कहीं ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। यह स्त्री की भावनाओं और उसके वजूद की उपेक्षा करना है।

बहनआपा जैसे शब्द के प्रचलित न होने का सीधा-सीधा संबंध समाज में व्यापत पुरुषवादी मानसिकता से है। हमारे देश में सदियों से पुरुषों का प्रभुत्व होने के कारण किसी भी विशेषण या गुण को उनसे जोड़कर ही देखा गया है। भाईचारा होना भी एक अच्छे व्यवहार की निशानी है, किसी व्यक्ति के गुणों को दर्शाता है। इसलिए इसमें भी केवल भाईयों के ही प्यार की बात की जाती है।

महापुरुष

इस शब्द का अर्थ है महान पुरुष यानी कि एक पुरुष जिन्होंने अपने जीवन में अच्छे और बड़े काम किए हैं। इस शब्द को हम कई बार किताबों में पढ़ते हैं और लोगों को बोलते देखते हैं। अधिकतर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और देश व समाज के लिए काम करने वाले लोगों के लिए इस शब्द का उपयोग किया जाता है। लेकिन, स्त्रियों के लिए इसके ही समकक्ष शब्द महास्त्री का उपयोग नहीं किया जाता है। कहीं-कहीं, महान स्त्री शब्द इस्तेमाल किया गया है लेकिन ऐसा कभी-कभी ही होता है। जबकि हमारे देश या विश्वभर में कई महिलाएं ऐसी हुई हैं जिन्होंने देश और समाज के लिए बड़े से बड़े बलिदान दिए हैं और सेवा की है। हमारे स्वंतत्रता संग्राम में भी कई महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अंग्रेजों से बराबर लोहा लिया था। इसके बावजूद भी महापुरुष शब्द के मुकाबले महास्त्री कहीं नहीं दिखती।

दरअसल, पुरुषवादी समाज होने के चलते स्त्री के बलिदान और योगदान को पहचान नहीं मिलती। पहले तो उन्हें न इसके मौके मिलते हैं और न इस लायक माना जाता है। फिर भी यदि महिलाएं अपनी क्षमताओं का परिचय दें तो उसे पहचान न देकर गुमनामी में धकलने की कोशिश की जाती है। इसलिए न ऐसी स्त्रियों के योगदान को सामने लाया गया और न ही महास्त्री शब्द प्रचलन में आया। इस बात को ध्यान में रखकर नारी उत्कर्ष ने भी ’महास्त्री’ काॅलम शुरू किया। जिसमें हमारे देश की महान स्त्रियों के कार्यों और बलिदान को रेखांकित किया जाता है।

इन शब्दों को अधिक से अधिक उपयोग में लाया जाना चाहिए। आम लोग तो ऐसा करें ही बल्कि साहित्यकारों को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। अगर स्त्री-पुरुष समानता की कल्पना करते हैं तो हर छोटे-बढ़े भेदभाव को मिटाना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published.