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कार्यबल में महिलाओं की कम भागीदारी से वृद्धि दर प्रभावित

इस बार आर्थिक समीक्षा परंपरा से हटकर गुलाबी रंग में रंगी दिखी. इसके जरिए सरकार ने महिला संबंधी मुद्दों को महत्व देने की कोशिश की.

इसमें कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं की श्रम, कृ​षि और राजनीति में भागीदारी जैसे मसलों को उठाया गया.

आर्थिक समीक्षा में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी पर जोर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि महिलाओं की कम भागीदारी से अर्थव्यवस्था की वृद्धि संभावना प्रभावित होती है.

वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा संसद में पेश 2017-18 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘‘विकासशील देशों में श्रम बल में भागीदारी दर के मामले में महिला-पुरूष में अंतर है. भारत के मामले में श्रम बल की भागीदारी दर में स्त्री-पुरूष असामनता 50 प्रतिशत से अधिक है.’’

समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी कम होने से अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर की संभावना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

इसके अनुसार सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिए उत्पादक आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को लेकर उपाय करती रही है. इसका मकसद कामगाजी महिलाओं को सहायता उपलब्ध कराना है. साथ ही कानूनी कदम उठाकर मातृत्व लाभ बढ़ाया गया है.

समीक्षा में कहा गया है कि श्रम बाजार में महिला कर्मचारी सर्वाधिक नुकसान में हैं. इसका कारण कम कुशल कर्मचारियों में उनकी हिस्सेदारी अधिक होना तथा कम उत्पादकता वाले एवं कम वेतन वाले कार्यों में लगे होना है.

इसमें कहा गया है कि इसके कारण महिलाएं काफी कम वेतन प्राप्त करती हैं. दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और चिली जैसे देशों की तुलना में भारत में 2015 कर्मचारियों के औसत वेतन के मामले में स्त्री-पुरूष असमानता सर्वाधिक है.

समीक्षा में यह भी कहा गया है कि 2010 से 2017 के बीच महिलाओं का प्रतिनिधित्व लोकसभा में एक प्रतिशत बढक़र 11.8 प्रतिशत रहा और लोक सभा में 542 सदस्यों के बीच 64 और राज्य सभा में 245 में 27 महिला सदस्य थीं.

अक्तूबर 2016 में पूरे देश में 4,118 विधायकों में महिलाओं का हिस्सा केवल 9 प्रतिशत था. बिहार, हरियाणा और राजस्थान में महिला विधायकों का अनुपात सर्वाधिक 14 प्रतिशत रहा. उसके बाद मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल (13 प्रतिशत) और पंजाब (12 प्रतिशत) का स्थान था.

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