महिलाओं की जीवटता और सुरक्षा को देखते हुए सरकार ने भी स्वीकार कर लिया कि ट्रांसपोर्ट में महिलाओं के लिए रोजगार के मौके हैं. यह न सिर्फ उनकी आजीविका का साधन बन सकता है, बल्कि महिला ड्राइवर और कंडक्टर के होने से महिला सवारियों की सुरक्षा भी बढ़ेगी. तभी तो यूपी रोडवेज ने महिला ड्राइवर और कंडक्टर की भर्ती निकाली, तो उबेर रेप केस के बाद दिल्ली पुलिस ने भी महिला कैब ड्राइवर तैयार करने की ठानी है.
सरकार की ओर से महिलाओं को पिंक बस एक्सप्रेस का खास उपहार दिया गया था. महिलाओं के लिए शुरू की गई इन बसों की एक खासियत यह भी है कि इनमें टिकट काटने के लिए भी महिला परिचालक (कंडक्टर) ही नियुक्त की गई हैं. बानगी हैं, नोएडा की अनुराधा. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले की रहने वाली अनुराधा पिछले दो सालों से यूपी रोडवेज में परिचालक हैं. पहली बार उन्हें दिल्ली से लखनऊ के बीच लंबे रूट पर कंडक्टर का पद मिला है. इस बस का टाइम 7 बजे है. इससे पहले वह दिल्ली की लोकल बस सेवा में भी कंडेक्टर का काम कर चुकी हैं. हाथों में ई-टिकटिंग मशीन थामे धड़ाधड़ टिकट काटने के बाद जब अनुराधा परिचालक सीट पर बैठती है, तो लोग उन्हें हैरत भरी निगाहों से देखते हैं. एमबीए कर चुकी अनुराधा के इस क्षेत्र में आने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है.
कैसे बनीं कंडक्टर
अनुराधा का यहां आना अत्याचार के सीने को रोंदता कदम भी माना जा सकता है. 16 दिसंबर 2012 को घटे निर्भया कांड को कौन भुला सकता है. दिल्ली की एक काली रात, एक सड़क, उस पर लगातार दौड़ती कोई बस, उसमें एक लड़की और उस लड़की को मानव की शक्ल में नोंचते कुछ पशु…. उस घिनौनी घटना ने अनुराधा के मन को ऐसा झकझोरा कि उन्होंने बस सर्विस में अपनी सेवाएं देने की ठान ली. अनुराधा कहती हैं, “एमबीए पूरी करके मैं जॉब कर रही थी. तभी निर्भया कांड हुआ. उस रेप ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? अगर उस रात बस में कोई महिला कंडक्टर या ड्राइवर होती तो शायद ऐसा न होता. मुझे सड़क पर दौड़ती बसों में महिलाओं के न होने की कमी का आभास हुआ. साथ ही यह भी महसूस किया कि लड़कियों के साथ रोज ही ऐसा होता है. “
अनुराधा बताती हैं, “ मैंने घर में यह बात बताई तो पापा ने कह दिया, जो मर्जी है करो. कोई भी क्षेत्र लड़का या लड़की का नहीं होता. जिस चीज में खुशी मिले वह करना चाहिए. रोडवेज की तरफ से वेकेंसी निकली थी. मैंने तुरंत आवेदन कर दिया. वह बताती हैं कि मैं एनसीसी कैडेट की बेस्ट शूटर और बटालियन की लीडर रही हूं. मेरा चयन हो गया और नोएडा के सी-चौक में 2 हफ्ते की ट्रेनिंग दी गई. “
अनुराधा को रोडवेज बस से हाल ही में पिंक बस सेवा में ट्रांसफर कर दिया गया है. आपको देखकर सवारियों का रूख कैसा रहता है इस बात के जवाब में अनुराधा कहती हैं पहले तो सवारियां चढ़कर कंडेक्टर को ढूंढती हैं कि कंडेक्टर कहां है. शुरू-शुरू में यह बात मुझे अजीब लगती थी, लेकिन अब आदत पड़ गई है. लोगों को आदत डालनी होगी यह देखने की. समस्याओं के बारे में अनुराधा कहती हैं कि रोज टिकट काटनी होती हैं. अलग-अलग तरह के लोग मिलते हैं. कई बार कहासुनी भी हो जाती है. अगर लड़के होते हैं तब तो कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कई बार महिलाओं से भी अनबन हो जाती है. यह स्थिति बड़ी अजीब होती है. बस में बैठे लड़के हंसने लगते हैं और कमेंट पास करने लगते हैं कि लड़की ही लडकी से लड़ रही है. जबकि ऐसा नहीं है. लोगों को यह समझने की जरूरत है कि वहां मैं लड़का या लड़की नहीं, बल्कि बस कंडक्टर हूं. लड़कों की तरह लड़कियों से भी अनबन हो सकती है. दूसरा लड़कियों को भी यूनिटी से रहना चाहिए. इतने दिनों के अनुभव के आधार पर मैंने महसूस किया है कि लड़कियों में यूनिटी का बहुत अभाव है, यही कारण है कि पुरूष इस बात का फायदा उठाते हैं.
अनुराधा मानती हैं कि लड़कियों को लगता है कि कोई और उनकी सुरक्षा कर देगा, जबकि ऐसा नहीं है. जब तक हम खुद मजबूत नहीं बनेंगे, कोई हमारी रक्षा नहीं कर सकता. फिर चाहें सरकार कितनी ही योजनाएं चला ले, या कितनी ही पुलिस तैनात हो जाए. हमें खुद ही सक्षम होगा. लड़कियों के अंदर दिन में सुरक्षित रहने की भावना और रात में असुरक्षा का भय समाया हुआ है. उन्हें यह समझना होगा कि अगर हम सक्षम नहीं हैं, तो दिन में भी हमारे साथ कुछ गलत हो सकता है. अनुराधा कहती हैं कि इस पेशे में आकर जहां लड़कियों को सुरक्षा मिलेगी, वहीं पुरूषों के दिमाग में भी समाया हुआ भेदभाव खत्म होगा. उन्हें यह बात समझ में आएगी कि लड़कियां हर काम करने में आगे हैं. अनुराधा अच्छे-खासे वेतन वाली प्राइवेट नौकरी छोड़कर कंडक्टरी कर रही हैं. वह बताती हैं कि नौकरी में वेतन ज्यादा था, लेकिन समय ज्यादा देना पड़ता ता. ऊपर से संतुष्टि भी नहीं मिल रही थी. यहां आकर मुझे लगता है कि मैं कुछ अलग काम कर रही हूं.
सीमा ने लिखी हौसले की दास्तान
हौसले की ऐसी ही दास्तान लिखी बुलंदशहर जिले की सीमा ने. रात नौ बजे के बाद जहां महिलाओं को घरों में कैद होने की नसीहतें दी जाती हैं, वहीं सीमा रातभर बस में टिकट काटती हैं. अलीगढ़ की रहने वाली सीमा हाल ही में रोडवेज की ओर से आनंद विहार से लखनऊ के लिए चलाई जा रही महिला स्पेशल पिंक एक्सप्रेस के लिए परिचालक नियुक्त की गई हैं. नोएडा में रह रही और शिक्षा में इंटरमीडिएट सीमा का चार माह का बेटा है. सीमा कहती हैं कि उनके पति सिलाई का काम करते हैं. उन्हें शुरू से ही कुछ नया करने का शौक था. ऐसे में जब पिंक एक्सप्रेस में परिचालक की जगह देखी तो तुरंत हां कर दिया. वे कहती हैं कि उन्हें और भी ज्यादा अच्छा लगा कि आसपास महिलाएं परिचालक नहीं होती, लेकिन यह मौका उन्हें मिल रहा है. सीमा चार माह के बच्चे की मां है. फिलहाल वह बच्चे की परवरिश के लिए वह कुछ माह के अवकाश पर हैं. इस तरह एक और महिला परिचालक हैं आशा, जो पिंक एक्सप्रेस में मुस्तैदी से परिचालन का काम देख रही हैं.
हालांकि, यह संख्या सिर्फ महिलाओं के लिए शुरू की गई स्पेशल महिला एक्सप्रेस बसों में ही बढ़ी है. सामान्य रोडवेज या लोकल बसों में महिला ड्राइवर या परिचालक का होना आज भी हैरानी भरा कदम माना जाता है. लेकिन, सवाल यह है कि जब महिलाएं लेडीज स्पेशल बसों में सफलतापूर्वक परिचालन कार्य देख सकती हैं, तो सामान्य बसों में आखिर क्यों नहीं? इसके लिए बहुत ज्यादा डिग्री हासिल करने की भी जरूरत नहीं है. जिस तरह सामान्य पढ़े-लिखे पुरुष इस पेशे में आते हैं, उसी तरह महिलाओं के लिए भी इसके दरवाजे खुलने चाहिए. सरकार को इसकी भर्ती प्रक्रिया में लचीलापन दिखाने की जरूरत है. साथ ही समाज को भी महिलाओं को स्वीकार कर उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए.