बरसों से गाड़ी पर पीछे बैठ रहीं औरतों का ख्याल सरकार को तो देर से आया ही लेकिन महिलाएं अब भी नहीं जागी हैं। बाइक या स्कूटर पर पीछे बैठने वाली महिलाओं के लिए हेल्मेट अनिवार्य होने के बावजूद भी पूरी तरह से नियम का पालन नहीं हो रहा है। कई फिजूल कारणों से हेल्मेट न लगाकर महिलाएं खुद को ही नुकसान पहुंचा रही हैं।
लंबे समय से चर्चाओं के बाद बने नए ट्रैफिक नियम के अनुसार अब बाइक या स्कूटर पर पीछे बैठी महिलाओं को भी हैल्मेट पहनना अनिवार्य हो गया है। पहले भी कई बार जोरशोर से इस नियम पर बहस हुई है लेकिन यह कभी अमल में नहीं आ पाया। वर्ष 1993 में महिलाओं के हैल्मेट पहनने का विरोध होने पर इसे ‘संवेदनशील मुद्दा‘ मानकर उनके लिए ऐच्छिक कर दिया गया था। वहीं, गाड़ी चलाने और पीछे बैठने वाले पुरुषों के लिए हैल्मेट काफी पहले ही अनिवार्य हो चुका था। मोटर व्हीकल एक्ट में केवल सिखों को छोड़कर अन्य सभी पुरुषों के लिए हैल्मेट पहनना जरूरी है लेकिन महिलाओं के लिए इस कानून में कोई प्रावधान नहीं था। अब हाइकोर्ट के आदेश के बाद सरकार को महिलाओं की सुरक्षा का ख्याल आया और उनके लिए भी हैल्मेट अनिवार्य किया गया।
सरकार की नींद तो देर से टूटी ही लेकिन महिलाएं अब भी अपनी सुरक्षा को लेकर अनजान बनी हुई हैं। अधिकतर महिलाएं नियम बनने के बाद भी गाड़ी पर बैठते समय हैल्मेट नहीं लगा रही हैं। जो लगा भी रही हैं वो या तो चालान के डर से या आधा सिर ढकने वाला हैल्मेट पहनती हैं। पकड़े जाने पर बहाने होते हैं जैसे, नियम का पता नहीं था, हेल्मेट भूल गए और बाल खराब हो जाते हैं आदि। इससे ट्रैफिक पुलिस को भी लंबी-चैड़ी का बहस का सामना करना पड़ता है।
ट्रैफिक पुलिस के मुताबिक हेल्मेट न लगाने वाली लड़कियों के एक दिन में करबी 2,500 तक चालान काटे जा रहे हैं। ट्रैफिक इंस्पेक्टर कहना है, ‘नए नियम का प्रचार भी किया गया है और पकड़े जाने पर महिलाओं को उनकी सुरक्षा को लेकर जागरूक भी कर रहे हैं लेकिन अब भी पूरी तरह से नियम का पालन नहीं हो रहा है।‘ ट्रैफिक हेडकाॅन्स्टेबल प्रदीप बताते हैं कि पकड़े जाने पर अधिकतर बहाना होता है कि उन्हें नियम का पता नहीं था। अगली बार से लेकर आ जाएंगे। कई बार कहती हैं कि उनके साइज का हैल्मेट नहीं मिला। वहीं, एक अन्य काॅन्स्टेबल बताते हैं, ‘हैल्मेट पहनने से बाल टूट जाते हैं, हेयर स्टाइल खराब हो जाता है, जैसे बहाने भी सुनने को मिलते हैं।‘
जब इस बारे में महिलाओं से बात की गई तो हैल्मेट उनकी सुरक्षा के लिए है, हैल्मेट लगाने की यह वजह उनकी प्राथमिकता में नहीं थी। नोएडा में काम करने वाली प्रिंसी अपने भाई के साथ बाइक पर जाते समय हेल्मेट नहीं लगातीं जबकि उनके साथ एक बार दुर्घटना भी हो चुकी है। डाॅक्टर का ये भी कहना था कि हैल्मेट लगाया होता तो कम चोटें आतीं। अब भी हैल्मेट न लगाने का बारे में पूछने पर वह कोई ठोस कारण नहीं बता पाईं।
अक्सर अपने पति के साथ बाइक पर दिल्ली से गांव जाने वाली निर्मल आजकल हैल्मेट की कीमत पता कर रही हैं। उनसे पूछने पर कहती हैं, ‘पुलिस वाले पकड़ लेते हैं इसलिए खरीदने की सोच रही हूं।‘ वहीं, बेटी के साथ स्कूटी पर जाने वाले मंगोलपुरी की सुमन बताती हैं,‘ ज्यादा दूर नहीं जाना होता इसलिए हेल्मेट नहीं लगाती और फिर आदत भी नहीं है तो अजीब लगता है।‘
हैल्मेट लगाने से ट्रैफिक पुलिस को फायदा नहीं होता। ये मसला चालान का नहीं महिलाओं की सुरक्षा का है। ऐसे में लड़कियां हैल्मेट न लगाकर या बेतुके बहाने देकर अपनी ही जान से खिलवाड़ करती हैं। उन्हें अपनी सुरक्षा का ख्याल खुद भी करना चाहिए। मीडिया के जरिए नियम की सूचना कई बार दिए जाने पर भी यह संभव नहीं लगता की लड़कियों को इसका पता न हो। यह भी कोरा बहाना लगता है कि अभी तक उनके साइज का हैल्मेट नहीं मिला। महिलाओं के सिर का साइज भी पुरुषों से कोई बहुत अलग नहीं होता। बाजार में हर साइज के हैल्मेट उपलब्ध हैं। हालांकि, जूड़ा बनाने पर जरूर परेशानी होती है, पर अपनी सुरक्षा के आगे जूड़े के बजाए चुटिया बना लेना कोई बड़ी बात नहीं।
इसके अलावा एक अन्य कारण जो ट्रैफिक पुलिस और लड़कियों ने खुद बताये हैं कि हैल्मेट से उनके बाल टूट जाते हैं या हेयर स्टाइल खराब हो जाता है। एक तरफ जिंदगी हो और दूसरी तरफ सुंदरता, तो लड़कियां क्या चुनेंगी? यह जाहिर है कि समझदार हो या बेवकूफ कोई भी व्यक्ति जिंदगी ही चुनेगा। लेकिन जब तक दुर्घटना घटित नहीं हो जाती तब तक लड़कियों को इसकी भयावहता का अहसास नहीं होता। यह प्रमाणित है कि बाइक या स्कूटर की दुर्घटना होने पर चलाने वाले से ज्यादा चोट पीछे बैठने वाले को लगती है। साल 2013 में पीछे बैठने वाली 50 से अधिक महिलाएं सड़क दुर्घटना की शिकार हुई थीं। कई बार तो महिलाओं के हाथ में बच्चा भी होता है, जिससे वो बाइक चालक को भी पकड़ नहीं पातीं। इसलिए हैल्मेट लगाने पर आप चाहे कम सुंदर क्यों न लगें, लेकिन जिंदा तो रहेंगी।
हालांकि, ट्रैफिक पुलिस का यह भी कहना है कि नियम बनने और सख्ती होने के बाद स्थिति थोड़ी बदली है। अमूमन महिलाएं एक बार चालान कटने पर दूसरी बार हैल्मेट पहन लेती हैं, पर इसमें अभी और समय लगेगा और लगातार कोशिश करने की जरूरत होगी। इसका मतलब यह भी है कि अभी कई और साल महिलाओं की जान को खतरा बना रहेगा। ऐसे में सरकार पर भी यह सवाल उठता है कि आखिर उसने महिलाओं की सुरक्षा हेतु यह नियम बनाने में इतनी देरी क्यों की? अगर महिलाओं का विरोध था, तो भी सरकार उनकी भलाई के लिए सख्ती से पेश आ सकती थी। अगर यह नियम पहले बन चुका होता, तो आज लगभग सभी महिलाएं इसका पालन कर रही होतीं। इसी तरह जो सिख महिलाएं पगड़ी नहीं पहनतीं, उनका भी हैल्मेट न लगाना दुर्घटना को बुलावा देने जैसा है। इस संबंध में ट्रैफिक इंस्पेक्टर का कहना है कि कानून बनाने वाले भी इस समाज से ही है। उनमें भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जागरूकता नहीं है। अब मामला उठा तो, कानून बन गया है।
हाफ हेल्मेट
पीछे बैठने वाली महिलाओं या लड़कियों के मुकाबले स्कूटी चलाने वाली महिलाएं हैल्मेट अधिक लगाती हैं लेकिन उनमें भी पूरा चेहरा ढकने वाला हैल्मेट इक्का-दुक्का ही पहनती हैं। ज्यादातर लड़कियां चालान से बचने के लिए केवल खानापूर्ति करती हैं और हाफ हैल्मेट पहनकर चलती है, जो केवल उनका सिर ही सुरक्षित कर पाता है। पर दुर्घटना होने पर अगर आप मुंह के बल गिरते हैं तो नाक, दांत और थोडी पर भी चोट आने का समान खतरा रहता है। ट्रैफिक नियमों के मुताबिक भी आईएसआई मार्क युक्त और पूरा सिर व चेहरा ढकने वाला हैल्मेट पहनने की हिदायत दी गई है। इसके बाद भी लड़कियां खुद कोे खतरे में डालती हैं। स्कूल में शिक्षिका प्रीति रोज स्कूटी से पढ़ाने जाती हैं। लेकिन वो केवल सिर ढकने वाला हैल्मेट ही पहनकर निकलती हैं। चार साल से स्कूटी चलाने के बावजूद भी फुल हैल्मेट न खरीदने का कारण वो बताती हैं, ‘हाफ हैल्मेट में कोई खतरा नहीं महूसस होता।
इस मामले में नियम भी सख्त नहीं है क्योंकि हाफ हैल्मेट होने पर चालान काटने का कोई प्रावधान नहीं है। ट्रैफिक पुलिस आॅफिसर ने बताया, ‘हाफ हैल्मेट सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल सही नहीं है लेकिन इस पर कोई चालान नहीं लगता। साथ ही लोग सस्ता हैल्मेट भी इस्तेमाल करते हैं, जो चोट से बचाने की बजाए उल्टा नुकसान कर देता है।‘ यह जरूरी है कि हैल्मेट के आकार और गुणवत्ता को लेकर नियम सख्ती से लागू हों। सरकार और लोग दोनों की ओर से लापरवाही होती रही तो सड़क दुर्घटना के मामले बढ़ते रहेंगे।
सुरक्षा से ज्यादा चालान का डर
हैल्मेट पहनने के नियम को महिला हो या पुरुष कोई भी अपनी सुरक्षा से जोड़कर नहीं देखते हैं। लोग चालान कटने के डर से ही हैल्मेट पहनकर निकलते हैं। इसी कारण वो हैल्मेट को मुसीबत भी मानते हैं। लेकिन यह नियम सरकार के फायदे के लिए नहीं, बल्कि लोगों की अपनी सुरक्षा के लिए है। गाड़ियों की संख्या बढ़ने, शराब पीकर गाड़ी चलाने और अन्य कारणों से सड़क दुर्घटनाएं बढ़ ही रही हैं, ऐसे में हैल्मेट और जरूरी हो जाता है। साथ ही केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि जल्द से जल्द पूरे देश में भी महिलाओं के लिए हैल्मेट पहनना अनिवार्य होना चाहिए।