आपबीती कुछ ऐसी घटनाएं, जो उनके साथ सिर्फ इसलिए हुर्इं क्योंकि वो लड़कियां थीं. रहन-सहन, बोलने-चालने और जीवन जीने के अलग मापदंड बनाए गए और लड़कियों को न चाहकर भी उन्हें अपनाना पड़ा. हर कदम, हर वक्त ऐसे ही नियमों, मापदंडों और परंपराओं के कुपरिणाम भुगत चुकीं या उनका विरोध करने वालीं आप जैसी ही लड़कियों और महिलाओं की कहानियां नारी उत्कर्ष यहां दे रही है :
नेहा विज्ञापन क्षेत्र में काम करती हैं और रोज लंबा सफर तय करके दिल्ली से नोएडा अपने ऑफिस जाती हैं. कुछ सालों तक कमाने के बाद नेहा को एक स्कूटी लेने की जरूरत महसूस हुर्इ. उसने अपने माता-पिता के सामने स्कूटी खरीदने की इच्छा जाहिर की लेकिन उन्होंने स्कूटी लेने से साफ इंकार कर दिया. सामान्य तौर पर लगेगा कि शायद पैसे खर्च होने या गैर जरूरी लगने के कारण मना किया गया होगा. आमतौर पर ऐसे ही कारण सुनने को मिलते हैं.
लेकिन, यहां ऐसी कोर्इ वजह नहीं थी. नेहा के माता-पिता के मना करने की वजह थी उसका लड़की होना और लड़की के जीवन में शादी सबसे अहम होना. उनका कहना था कि स्कूटी नहीं खरीदनी है. अगर स्कूटी चलाते हुए तेरे हाथ पांव टूट गए तो तेरी शादी कैसे होगी. आखिरकार नेहा को स्कूटी नहीं लेने दी गर्इ. जहां लड़के को बिना शादी की चिंता किए व्यस्क होने से पहले ही बाइक दे दी जाती है, वहीं लड़की के लिए शादी ही रोड़ा बना दी जाती है. ये दिखाता है कि कैसे शादी लड़की के जीवन के छोटे से छोटे पहलू को प्रभावित करती है.
– नेहा शर्मा, पालम (दिल्ली)
दिल्ली में रहने वाली निशा एक मध्यमवर्गीय परिवार में पली-बढ़ी हैं. निशा बताती हैं कि जब वह ग्रेजुएशन की पढ़ार्इ के बाद बीएड करना चाहती थीं तब उनके घर में उनकी शादी की बात चलने लगी. वह उस समय शादी नहीं करना चाहती थीं क्योंकि शादी के बाद उनकी पढ़ार्इ पूरी नहीं हो पाती. इसलिए, निशा ने शादी के लिए रिश्ते ढूंढने से मना कर दिया और आगे पढ़ने की बात कही. लेकिन, उसके घरवालों को यह मंजूर नहीं था और वो निशा की पढ़ार्इ का ही विरोध करने लगे. माता-पिता, नाना-नानी सभी ने पहले उसे शादी के फायदे गिनाने शुरू किए. फिर आश्वासन दिया कि वह शादी के बाद भी पढ़ सकती है.
निशा को इन आश्वासनों पर भरोसा नहीं था क्योंकि अपने आसपास उसके सामने कर्इ लड़कियां शादी के बाद पढ़ार्इ या नौकरी नहीं कर पार्इ थीं. ऐसे में निशा ने अपना विरोध जारी रखा और शादी के लिए नहीं मानी. निशा कहती हैं, ”तब घरवालों ने मेरी पढ़ार्इ को ही हथियार बना लिया और धमकी दी कि अगर मैं शादी के लिए हां नहीं बोलूंगी तो मुझे आगे पढ़ने के लिए पैसे नहीं देंगे और सर्टिफिकेटस भी रख लेंगे.”
अब इस सिथति में निशा डर गर्इ और कोर्इ रास्ता न होने पर मजबूरन रिश्ते ढूंढने के लिए हां बोल दी. उसी घर में निशा के भार्इ को ग्यारहवीं कक्षा में दो बार फेल होने पर भी डांट-डपट कर स्कूल पूरा कराया गया. फिर नंबर कम होने के कारण निजी कॉलेज में लाखों की फीस देकर प्रवेश दिलाया गया. ऐसे कर्इ उदाहरण साबित करते हैं कि महानगरों में भी शादी लड़कियों के करियर पर ग्रहण बनकर छार्इ हुर्इ है.
– निशा कुमारी, मंगोलपुरी, (दिल्ली)
पूजा सिंह दिल्ली में रहती हैं और अभी एक गैर-सरकारी संस्था में काम करती हैं. पूजा अपनी ग्रेजुएशन के बाद के समय को याद करते हुए कहती हैं “उस वक्त लगा जैसे मैं कोर्इ बोझ हूं”. घरवालों को बहुत कष्ट दे रही हूं इसलिए मुझे शादी कर लेनी चाहिए. पूजा के दो भार्इ हैं, एक उससे बड़ा और एक छोटा. पत्रकारिता की पढ़ार्इ पूरी हुर्इ तो पूजा और उसके दोस्त पोस्ट ग्रेजुएशन करने की योजना बनाने लगे. लेकिन, पूजा के घर में तो कुछ और ही योजनाएं बन रही थीं.
पूजा के बड़े भार्इ की शादी की उम्र हो चली थी लेकिन जैसे कि समाज का नियम है कि पहले बहन की शादी ही होगी और फिर भार्इ की. ऐसे में पूजा की शादी की बात चलने लगी. उसकी बिना सहमति के लड़के ढूंढ के लाए जाने लगे. जब वो मना करती तो दूर-दूर के रिश्तेदार शादी के सुख पर निबंध सुनाते और ये भी कहते कि भार्इ को भी तो शादी करनी है, तुझसे पहले कैसे करेगा.
पूजा बताती हैं कि जहां उन्हें एक काजल लगाना भी पसंद नहीं था वहीं शादी के लिए उन्हें गुड़िया की तरह सजाधजा कर फोटो खिंचवार्इ गर्इ. इन सब झंझटों के बीच पूजा का एक साल बर्बाद हो गया. वह किसी कोर्स में एडमिशन नहीं ले पार्इं.
– पूजा सिंह, रोहिणी (दिल्ली)
बिहार के जमुई की रहने वाली अनीता इस समय दिल्ली में काम करती हैं और पीजी में रहती हैं. वह बताती हैं कि मेरी पढ़ार्इ में तो कोर्इ रुकावट नहीं आर्इ लेकिन मुझे पढ़ाया ही गया शादी के लिए. जब उन्होंने बारहवीं की पढ़ार्इ पूरी की तो घरवालों का कहना था कि इतनी पढ़ार्इ बहुत है अब आगे पढ़कर क्या करना है. घर का कुछ काम और सीख लेगी, फिर बड़ी बहनों के बाद इसकी भी शादी कर देंगे. फिर आसपास के परीचितों ने मेरे घरवालों को सलाह दी कि बेटी को और आगे पढ़ाना चाहिए.
अनीता कहती हैं कि ये सलाह इसलिए नहीं था कि लड़की को भी करियर बनाना चाहिए बल्कि उनका कहना था कि आजकल जमाना बदल गया है. लड़के भी पढ़ी-लिखी और नौकरी करने वाली लड़की मांगने लगे हैं. अगर थोड़ा और पढ़ा लोगे तो शादी के लिए अच्छा कमाऊ लड़का मिलने में आसानी होगी. अनीता के माता-पिता को ये बात ठीक लगी तो उन्होंने उसे ग्रेजुएशन की पढ़ार्इ करने के लिए कॉलेज भेज दिया. अगर अच्छे ससुराल का कारण न होता तो अनीता का करियर खत्म करने से पहले एक बार भी नहीं सोचा जाता.
– अनीता कुमारी, जमुई (बिहार)
प्रियंका दिल्ली में अपने पति के साथ रहती हैं और एचआर के तौर पर एक कंपनी में नौकरी करती हैं. प्रियंका बताती हैं, सांवला रंग होने के कारण घरवाले मेरे लिए बहुत परेशान रहते थे. उनकी कोशिश रहती थी कि कैसे न कैसे मेरा रंग साफ हो जाए. मेरा रंग कभी मेरी पढ़ार्इ और करियर के रास्ते में नहीं आया था, लेकिन परिवारों वालों को सबसे ज्यादा चिंता मेरी शादी की थी. प्रियंका बताती हैं कि कर्इ बार बाहर से जब रिश्तेदार आते तो घंटों-घंटों इसी पर चर्चा होती कि किसी सांवले रंग की लड़की की शादी में क्या-क्या परेशानियां आर्इं. कितने लड़कों ने मना कर दिया. कुछ लोग गोरे होने के नुस्खे भी बताकर जाते थे.
जैसे-तैसे इस सबके बीच प्रियंका ने अपनी पढ़ार्इ पूरी की और नौकरी करने लगीं. कुछ समय बाद उनके घरवाले प्रियंका की शादी के लिए रिश्ता ढूंढने लगे. माता-पिता का डर थोड़ा बहुत सही भी साबित हुआ. कुछ लोगों ने रंग के कारण ही रिश्ता करने से मना कर दिया. उनके घरवाले डरे-डरे से रहते थे. इसी डर में कर्इ बार तो प्रियंका के घरवालों ने ज्यादा दहेज देने या कम पढ़े-लिखे लड़के से भी शादी करने के लिए हां कर दी थी.
प्रियंका के रंग को लेकर वो झुकने को तैयार हो जाते थे लेकिन प्रियंका के विरोध के कारण रिश्ता नहीं हुआ. प्रियंका कहती हैं कि उस समय शादी के लिए मेरे रंग के सामने मेरे पढ़े-लिखे होने और नौकरी करने की कोर्इ अहमियत नहीं रह गर्इ थी. मेरे माता-पिता का सिर मुझे लेकर कभी नहीं झुका लेकिन शादी के मामले में वो मुझे कमतर आंकते थे.
– प्रियंका शर्मा, उतम नगर (दिल्ली)
नारी उत्कर्ष की राय
ये आपबीतियां दिखाती हैं कि गांव हो, शहर हो या महानगर हर जगह लड़कियों के जीवन का मुख्य लक्ष्य शादी ही माना जाता है. अगर इस काम में बाधा आती है तो लड़की की सारी काबिलियत महत्वहीन हो जाती है. कभी-कभी शादी के कारण उसे काबिल बनने का मौका ही नहीं दिया जाता. उसका जीवन शादी के इर्दगिर्द ही घुमा दिया जाता है. कर्इ लड़कियां तो पढ़ार्इ ही नहीं जातीं क्योंकि ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़कियां लोगों को पसंद नहीं होतीं.
अगर पढ़ार्इ करार्इ भी जाती है तो शादी के लिए ताकि जल्दी अच्छा लड़का मिल सके. लड़की के जीवन में शादी को इतना महत्वपूर्ण बनाकर घरवाले बेवजह परेशान होते हैं और जाने अनजाने लड़की को बोझ होने का अहसास कराते हैं. बहन की शादी के लिए भार्इ को रुकने की क्या जरूरत है? दोनों की जिंदगियां और इच्छाएं अलग-अलग हैं. अगर शादी का खर्च समस्या है तो अपनी बेटी को ही इतना सक्षम बनाएं कि वो आपकी मदद कर सके.
इन सभी उदाहरणों में लड़की को रोकने वाले उसके माता-पिता ही थे. लेकिन, रोकने की वजह समाज था क्योंकि बाहर वालों की बातें और आसपास ऐसा ही महौल देखकर माता-पिता के मन में डर बैठ जाता है. वो फिर जल्द से जल्द इस डर का निवारण ढूंढने लगते हैं. इसलिए घरवालों और लड़कियों को इस बात पर गौर करना होगा कि केवल शादी को आधार बनाकर अपनी जिंदगी के सारे निर्णय न लें. अगर जीवन में कभी कोर्इ कठिन परिस्थिति आए तो जितना संभव हो उतना विरोध जरूर करें.
(अगर आपकी भी कोर्इ आपबीती, कोर्इ समस्या या उलझन है तो आप नारी उत्कर्ष से संपर्क कर सकती हैं. आपको पूर्ण सहयोग देने का प्रयास किया जाएगा.)