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मेरे काम ने मुझे सम्मान दिलाया है


काम केवल आर्थिक संसाधन जुटाने का साधन नही है, बल्कि इसका संबंध पहचान से भी है. आर्थिक निर्भरता तो आपके काम करने के साथ ही आ जाती है, लेकिन पहचान धीरे धीरे बनती है. बनती हुई पहचान और समाज में मिलने वाली प्रतिष्ठा के साथ आत्म विश्वास बढ़ता है. असम की रहने वाली महिला उद्यमी ललिता देवी जैन भी अपने काम से अपने जीवन में यही बदलाव पाती हैं:

सामान्य मारवाड़ी परिवार की ललिता देवी जैन के पास बिजनस मैनेजमेंट की डिग्री नही है, लेकिन फिर भी वह एक सफल उद्यमी हैं. उनकी सफलता यह साबित करता है कि अगर आपके अंदर मेहनत करने का संकल्प है, कुछ कर गुजरने का जुनून है, दृढ़ इच्छा शक्ति है, तो आपको सफल होने से कोई नही रोक सकता. ललिता देवी के अंदर इसी तरह की जुनून है और उनके परिवार का सहयोग भी. उन्होंने प्रदेश के कला के प्रति अपनी रूचि को व्यवसाय का रूप दिया और एक ऐसी कंपनी बनाई जिसेने, खुद के रोजगार के साथ साथ कई औरतों को अपने पैर पर खड़ा होने का आधार प्रदान किया. बुनाई की कला को लोगों के लिए आजीविका का साधन बनाने वाली ललिता देवी मूगा और सिल्क की साड़ी बनाने वाली कंपनी चला रही हैं. उनकी कंपनी का नाम “मधुश्री” है, जो असम में करीब 25 सालों से चल रही है.

ललिता देवी जैन का बचपन बांग्लादेश व मेघालय की सीमा से सटे असम के एक छोटे से शहर मनकाचर में बीता. उनके पिता कंस्ट्रक्शन के व्यवसाय में थे और मां घर की जिम्मेदारियां संभालती थीं. सूरा गवर्नमेंट कॉलेज, मेघालय से उन्होंने ग्रेजुएशन की और फिर उनकी शादी हो गई है. शादी के बाद वह असम की एक आदिवासी क्षेत्र राजापरा में रहने लगीं. यह क्षेत्र शहर से करीब 50 किमी. दूर है. ललिता देवी के काम की शुरूआत अपनी कला से ही हुई. दरअसल, असम में ही पली बढ़ी होने के कारण ललिता देवी वहां की परंपरागत कलाओं से भलीभांति परिचित थीं. इन्हीं में से एक कला है, बुनाई. वहां आमतौर पर लड़कियां इस कला में माहिर होती हैं और बुनाई का काम भी करती हैं.

ललिता देवी ने अपने व्यवसाय की शुरूआत राजपारा से ही की. असम में घर घर में बनाई जाने वाली साड़ी को उन्होंने पहचान दिलाने की सोची और इसे न केवल अपने लिए बल्कि आस पास की महिलाओं के लिए भी अर्थोपार्जन का साधन बनाया है. इसके लिए उन्होंने असम में पहने जाने वाले पारंपरिक परिधान “मेखलाचादर”   को चुना. “मेखलाचादर” एक तरह की साड़ी है, जो मूगा और सिल्क के कपड़े से बनाई जाती है. ललिता देवी ने मूगा सिल्क और इन दोनों कपड़ों के मिश्रण से बनने वाले कपड़े से मेखलाचादर बनाने का काम शुरू किया और साल 1990 में मधुश्री कंपनी की शुरूआत की. उन्होंने हस्तकरघे (हैंडलूम) पर महिलाओं को इस साड़ी के निर्माण का प्रशिक्षण दिया और धीरे-धीरे बाजार में अपनी पहचान बनाई.

अपने काम के बारे में ललिता देवी बताती हैं कि हम आसपास के क्षेत्र से धागा मंगाते हैं, फैक्ट्री में ही उसकी रंगाई करते हैं, और फिर उससे साड़ियां बनाते हैं. साड़ियों की डिजाइन का काम भी यहीं होता है. हम फैक्ट्री में ही नई लड़कियों और महिलाओं को साड़ी बनाने का प्रशिक्षण भी देते हैं. ललिता देवी जहां खुद आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हैं वहीं, अन्य महिलाओं को भी इसका मौका दे रही हैं. उनकी कंपनी में केवल महिलाएं ही काम करती हैं और उनमें भी ऐसी महिलाओं की संख्या ज्यादा है, जो विधवा या अनाथ हैं. इस समय फैक्ट्री में करीब 40 से 50 लड़कियां और महिलाएं काम करती हैं. इसके अलावा कई औरतें फैक्ट्री में न आ पाने के कारण अपने घर से ही काम करती हैं. इस तरह उनकी कंपनी से बहुत बड़ी संख्या में आसपास के क्षेत्र की महिलाएं जुड़ी हुई हैं.

ललिता देवी उदाहरण हैं, इस समाज में कि सफलता के लिए महिला या पुरुष होना मायने नहीं रखता बल्कि महत्वपूर्ण है आत्मविश्वास के साथ मेहनत और लगन से काम करना. उन्होंने अपनी कंपनी की शुरूआत केवल 30000 रुपये से की थी लेकिन आज उनकी कंपनी का टर्नओवर 50 से 70 लाख रुपये तक पहुंच गया है. जहां पहले केवल एक करघे से काम होता था, आज वहां इतना काम है कि 25 करघे भी कम पड़ने लगे हैं. ललिता देवी की कंपनी मधुश्री की पहचान केवल असम तक सीमित नहीं है बल्कि उनके यहां बनी हुई साड़ियां दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों में भी जाती हैं. उनका गुवाहाटी में एक शोरूम भी था. सालों के निरंतर प्रयास के बाद मधुश्री आज एक ब्रांड बनकर उभरा है और आम लोगों में ही नहीं बल्कि सरकारी स्तर पर भी इसकी पहचान बनी है. केंद्रीय और राज्य मंत्रियों ने भी ललिता देवी के काम को सराहा है. उनके मुताबिक कई मंत्री, प्रशासक और जानेमाने लोग उनके काम का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने के लिए “मधुश्री” के प्रोडक्शन सेंटर का दौरा भी कर चुके हैं.

प्रतिभा को मिला सम्मान

ललिता देवी के काम को केवल पहचाना ही नहीं गया बल्कि उसे पुरस्कृत भी किया गया है. उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा उत्कृष्ट कार्य प्रदर्शन के लिए साल 2008 में नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था. साथ ही फिक्की लेडीज ऑर्गेनाइजेशन (एफएलआ) ने उन्हें वर्ष 2009 में देशभर की 25 महिला उद्यमियों में से एक तौर पर सम्मानित भी किया था. इसके अलावा ललिता देवी केप टाउन चैंबर ऑफ कॉमर्स, दक्षिण अफ्रीका द्वारा आयोजित इंटरनेशनल वुमन एंटरप्रेन्योर चैलेंज अवार्ड भी पा चुकी हैं. उन्हें बिजनस वर्ल्ड-फिक्की-सीईडीएफ करपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी अवार्ड-2009 के लिए भी नामित किया गया था. ललिता देवी पिछले आठ सालों से एफएलओ की सदस्य भी हैं.

घर से मिला सहयोग

ललिता देवी बताती हैं कि उनके घर में पहले से ही समानता का व्यवहार होता आया है. शादी के बाद उन्होंने काम शुरू किया, जिसमें उनके पति का पूरा सहयोग मिला. ललिता देवी के पति मेकेनिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने कहीं और जाकर काम करने की बजाए अपनी पत्नी के साथ ही रहने और उनके काम में मदद करने का निर्णय लिया. अब वे दोनों घर और बाहर की समान जिम्मेदारियां उठा रहे हैं. ललिता देवी को घर की जिम्मेदारियों के चलते अपने काम से समझौता नहीं करना पड़ा. परिवार के सदस्यों ने मिलजुलकर हर परिस्थिति का सामना किया. साथ ही वह कहती हैं कि वो और उनके पति एक दूसरे को समान अधिकार भी देते हैं. घर के बड़े कामों और निर्णयों में दोनों की बराबर भागीदारी और सलाह रहती है.

काम के प्रति लगाव

ललिता देवी अपने काम को केवल आजीविका का साधन नहीं मानतीं बल्कि उनका का कहना है कि इस काम से उन्हें अपने क्षेत्र में बहुत सम्मान मिला है. वह कहती हैं कि ऐसा नहीं होता कि कंपनी हर समय अच्छा चल रही हो. काम में कमी या बढ़त होती रहती है लेकिन मैं ये काम हमेशा जारी रखना चाहती हूं. इससे यहां रहने वाले लोगों की आय जुड़ी है और इस काम के कारण आसपास के लोग मुझे बहुत सम्मान भी देते हैं. ललिता देवी लंबे समय से यह कंपनी चला रही हैं और काम के सिलसिले में असम से बाहर भी आती जाती हैं. कंपनी में नफा नुकसान भी चलता रहता है लेकिन वो कभी इसे मुश्किल नहीं मानती हैं और अपने काम में आनंद का अनुभव करती हैं.

काम से बढ़ता है आत्मविश्वास

अपने लंबे अनुभव को साझा करते हुए ललिता देवी लड़कियों को खुद को कमजोर न समझने की सलाह देते हुए कहती हैं कि लड़कियां चाहें तो बाहर के काम, फिर चाहे वो बिजनस ही क्यों न हो, बहुत अच्छी तरह संभाल सकती हैं. हां, उनके सामने समाज की ओर से कुछ मुसीबतें जरूर आती हैं, पर अगर दृढ़ संकल्प हो तो वो अवश्य आगे बढ़ सकती हैं. ललिता देवी का मानना है कि लड़कियों के लिए काम करना बहुत जरूरी है. खुद कमाने से आप में आत्मविश्वास बढ़ता है. साथ ही बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी आपकी स्थिति में परिवर्तन होता है. एक ओर तो आप आर्थिक तौर पर निर्भर होती है, तो दूसरी ओर घर में आर्थिक मदद कर सकती हैं. अपने परिवार को और अच्छा जीवन दे सकते हैं. लड़कियों में अपार क्षमताएं हैं, बस वो उन्हें पहचाने और आगे बढ़ें. परिवार वाले भी उनका साथ दें. ललिता देवी कहती हैं कि उनके काम से उन्हें मिल रहा सम्मान उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है. ये काम न होता तो वो आज इस मुकाम पर न होतीं. इसी तरह हर लड़की को आत्मनिर्भर बनना चाहिए.

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