अक्सर हम कहते-सुनते हैं कि लड़कियां ये काम नहीं कर सकतीं, वो काम नहीं कर सकतीं, ये तो लड़कों का काम होता है. लेकिन, अरीना खान जैसी लड़कियां साबित करके दिखाती हैं कि काम तो काम होता है, उसे लड़का या लड़की के आधार पर नहीं बांटा जा सकता.
जयपुर की रहने वाली अरीना खान रोज सुबह 5 बजे उठती है और फिर तैयार होकर अपनी साइकिल पर निकल पड़ती है. अरीना पिकअप प्वाइंट से अखबार उठाती है और साइकिल पर रखकर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ चलती हैं. जैसे-जैसे वो सड़क पर बढ़ती जाती है, लोग उसे पलट-पलट कर देखते हैं. कईयों को उसे वहां देखने की आदत हो गई है तो अब देखकर पलटते नहीं हैं. अरीना सिटी पैलेस, आतिश बाजार, किशन पोल बाजार में लोगों तक खबरें पहुंचाकर अपने घर की तरफ लौट आती है. आठ साल से अरीना इसी तरह बिना रुके न्यूजपेपर हॉकर का काम करती जा रही हैं.
अपने आसपास हम देखते हैं कि न्यूजपेपर हॉकर का काम अधिकतर लड़के ही करते हैं. एकदम सुबह खाली सड़कों पर निकलने की जरूरत के चलते इस काम को लड़कों के लिए ही सही भी माना जाता है. लड़कियों के लिए ये काम लोग सुरक्षित नहीं मानते. लेकिन, अरीना खान ने इन सब बातों की परवाह किए बिना हॉकर के काम को अपनाया और अभी तक उसे कर रही हैं.
पिता के गुजरने के बाद उठाई परिवार की जम्मेदारी
अरीना के पिता भी न्यूजपेपर हॉकर थे और वह अपने पिता के साथ अखबार डालने जाया करती थी. लेकिन, पिता की मुत्यु के बाद उसे ये काम संभालना पड़ा. मां, पांच बहनें और दो भाई के परिवार की जिम्मेदारी आठ साल की नन्हीं अरीना ने उठा ली थी.
अरीना बताती हैं, ‘उनके पिता को टायफायड हो गया था और डॉक्टर ने उन्हें सुबह-सुबह ठंडी हवा में जाने से मना कर दिया था. कुछ समय तो वो नहीं गए लेकिन परिवार बड़ा था और कमाने वाले बस वो ही थे. ऐसे में उन्होंने फिर से अखबार डालना शुरू कर दिया. तब मैं भी उनके साथ जाने लगी. मैं उनकी साइकिल को धक्का लगा देती. जहां पहली, दूसरी या तीसरी मंजिल पर अखबार डालना होता तो मैं वहां डाल आती. इस तरह पिता की मदद कर देती थी.’
अरीना ने बताया, ‘इसी तरह दिन निकल रहे थे कि एक दिन मेरे पिता को दिल का दौरा पड़ गया और उनकी मौत हो गई. अब हम लोगों के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया. लोगों ने कहा कि मदद कर देंगे लेकिन एक समय बाद सबने साथ छोड़ दिया. फिर मेरी मम्मी ने बोला कि तू अपने पापा के साथ अखबार बांटने जाया करती थी, तुझे उस काम की जानकारी है इसलिए अब ये काम तू ही कर ले. मैंने हॉकर से बात की तो वह मान गया और फिर मैं पापा की साइिकल लेकर अखबार देने जाने लगी.’
न्यूजपेपर हॉकर का काम आसान नहीं था क्योंकि अरीना बहुत छोटी थी. यहां तक कि पापा की साइकिल भी साइज में बड़ी हो जाती थी और वो नई साइकिल खरीदने की हालत में नहीं थे. अरीना किसी तरह एक तरफ से साइकिल चलाकर ले जाती थी और इस कारण अखबार डालने में उसे देरी भी हो जाती थी. छोटी उम्र की अरीना कई बार रास्ता भी भूल जाती थी- वहीं, दूसरी तरफ किसी भी लड़की के पारंपरिक कामों से हटकर कुछ करने पर उसके लिए मंजिल आसान नहीं होती. लोगों की आलोचना और घूरती नजरों का सामना उसे करना ही पड़ता है. अरीना के साथ भी यही स्थितियां आईं.

आसान नहीं थी राह, सहने पड़े लोगों के ताने
अरीना बताती हैं कि जब उन्होंने हॉकर का काम शुरू किया तो रिश्तेदार ही इस पर आपत्ति जताने लगे. वो लोग मां से कहते कि कहां लड़की को सुबह-सुबह बाहर भेजती हो. अकेली लड़की का ऐसे जाना ठीक नहीं रहता. जब अकेली जाती तो पड़ोसी भी शुरुआत में हैरानी और शक भरी नजरों से देखते. उम्र बढ़ने के साथ-साथ लोगों की बातें भी बढ़ने लगीं थीं. लेकिन, तब अरीना की मां ने उन लोगों की एक नहीं सुनी और कहा कि अगर आप खाने को दे दो, काम छुड़वा देंगे. इसके आगे सबका मुंह बंद हो जाता.
इस काम के दौरान आई दिक्कतों के बारे में अरीना बताती हैं, ‘लोग एक लड़की को अखबार बांटते देखकर बहुत हैरान होते थे. रास्ते में पलट-पलट कर देखते थे. ग्राहक भी शुरुआत में कुछ हैरान हुए पर बाद में उन्हें भी आदत हो गई. लेकिन, कई बार अंधेरा और सड़कें सुनसान होने के कारण डर भी लगता था. लड़के कमेंट भी कर देते थे. उस दौरान डर भी लगा पर मुझे वो काम करना था तो मैं करती रही.’ इसके आगे अरीना हंसते हुए बताने लगती हैं कि उन्हें कुत्ते, बंदर सभी ने कभी न कभी काटा. वो छोटी थी तो उन्हें डरा कर भगा नहीं पाती थी.
बहुत अच्छी बात ये रही कि इस दौरान अरीना ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. हालांकि, मुश्किलें वहां भी आईं. सुबह 8 बजे तक अखबार डालने के चलते अरीना को स्कूल पहुंचने में देरी हो जाती थी और स्कूल में डांट पड़तीं. उनकी मम्मी को भी स्कूल में बुलाया गया.
अरीना बताती हैं, ‘हमने प्रिंसिपल को बताया कि मुझे अखबार डालने जाना होता है और उससे ही घर चलता है इसलिए एक घंटा देर से आने की अनुमति दे दीजिए. लेकिन, प्रिंसिपल नहीं मानीं और कहा कि एक बच्चे के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता. फिर मुझे स्कूल से निकाल दिया गया. इसके बाद कुछ और स्कूलों में भी बात की लेकिन एक घंटा देर से आने की अनुमति किसी ने नहीं दी. बहुत ढूंढने के बाद अरीना को रामगंज के रहमानी मॉडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल’ में एडमिशन मिला और देर से आने की अनुमति भी मिल गई.
अरीना ने बारहवीं तक पढ़ाई पूरी की और एक प्राइवेट क्लीनिक में कंपाउडर का काम करके पढ़ाई का खर्चा उठाया. 12वीं के बाद कंप्यूटर ऑपरेटर के तौर पर फुल टाइम जॉब की. साथ ही कॉरस्पॉन्डेंस से ग्रेजुएशन भी करती रहीं. अब अरीना एक पत्रकार बनने के सपने देखती हैं और जीवन में आगे बढ़ते जाना चाहती हैं.
राष्ट्रपति से मिला काम को सम्मान
अपने इस जीवन संघर्ष के लिए अरीना को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अवॉर्ड भी मिला. उनका वुमन ऑफ द फ्यूचर की टॉप 100 की सूची में चयन किया गया था. अरीना को अलग-अलग संस्थाओं की तरफ से सम्मानित किया जा चुका है. अरीना बहुत खुश हैं कि इस दौरान किरन बेदी, आनंद पटेल जैसे प्रतिष्ठित लोगों से मिलीं जिससे उनका हौसला और बढ़ गया. वह अब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी मिलना चाहती हैं.
फिलहाल अरीना के घर में अब और भी लोग कमाने वाले हैं. एक बहन और दोनों भाई नौकरी करते हैं और दो बहनें पढ़ रही हैं. छोटी सी उम्र से ही परिवार को संभालने वाली अरीना कहती हैं कि कम उम्र में ही उन्हें दुनियादारी की बहुत समझ हो गई. लड़कियों के काम करने को लेकर वह कहती हैं कि आज के समय में जितने लोग काम करें उतना कम है. आगे कैसा घर, कैसा पति मिले कौन जानता है इसलिए नौकरी करनी ही चाहिए. अपने पैरों पर खड़े होकर बहुत अच्छा लगता है.
यह दुखद है कि अरीना को बहुत छोटी उम्र से काम करना पड़ा. बच्चे के लिए जब पढ़ाई और खेलकूद सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं उस उम्र में अरीना को बड़ों की तरह घर संभालना पड़ा. लेकिन, परिस्थितियों पर जब जोर नहीं होता तो व्यक्ति का खुद को संभालना बहुत जरूरी होता है. अरीना ने भी वही किया. बहुत छोटी उम्र में असामान्य काम करके उन्होंने दिखा दिया कि एक लड़की भी अपने परिवार का हर तरह से सहारा बन सकती और कोई भी काम ऐसा नहीं जो लड़कियां नहीं कर सकती हैं.