हर दिवाली पर लोग लक्ष्मी पूजन करते हैं. इस पूजा में लोग धन की देवी लक्ष्मी को अपने घर आने का अनुरोध करते हैं.
दिवाली के अलावा भी कौन नहीं चाहता कि उसके घर लक्ष्मी पधारे. लेकिन, एक लक्ष्मी ऐसी भी है जिसे हम घर के अंदर नहीं लाना चाहते. उसे हमें लक्ष्मी बोलते तो हैं लेकिन उसके आगमन से हमें खुशी की जगह दुख होता है.
ये लक्ष्मी हैं हमारी बेटियां. जब अस्पताल में प्रसव के बाद नर्स बताती है कि आपके घर लक्ष्मी आई है तो कई चेहरे मायूस हो जाते हैं. ऐसा क्यों है कि जिस बेटी को खुद हमने लक्ष्मी का नाम दिया है उसे ही हम लक्ष्मी जैसा दर्जा नहीं देते? आखिर ये किस तरह की लक्ष्मी है? ये नाम उसे क्यों दिया गया?
हमारे समाज की व्यवस्था कुछ ऐसी है कि बेटी को धन लाने वाली नहीं बल्कि धन ले जाने वाली लक्ष्मी बना दिया गया है. लड़की को संपत्ति में अधिकार देने की बजाय दहेज देकर विदा करने की पंरपरा ने उसे एक बोझ की तरह प्रदर्शित किया है.

इसी दहेज देने को हम लक्ष्मी का जाना मानते हैं. इसलिए लड़की को पराया धन भी कहा जाता है और उम्र उसे बोझ की संज्ञा दी जाती है. हो सकता है कि बेटी को लक्ष्मी का नाम इसलिए दिया गया हो ताकि लोग उसको लक्ष्मी के समान सम्मान दें. लेकिन, हकीकत में इसके उलट ही देखने को मिलता है.
वहीं, कुछ जगहों पर ससुराल पक्ष के लोग भी बहु को लक्ष्मी कहते हैं लेकिन ऐसी लक्ष्मी जो उनके लिए दहेज के तौर पर धन लेकर आती है. अगर वो ही लक्ष्मी दहेज लेकर नहीं आती तो उसे घर क्या इस दुनिया से ही विदा कर दिया जाता है. अगर वाकई हम उसे लक्ष्मी के समान दर्जा देते तो ज्यादा दहेज लाने वाली बहु का ज्यादा महत्व और कम लाने वाली को उपेक्षा नहीं मिलती.
ये हमारा दोहरा रवैया ही तो है कि जहां शब्दों में बेटी को सम्मान देते हैं वहीं व्यवहार में उसे असम्मानित करते हैं. अगर हम बेटी को असल में लक्ष्मी जितना महत्वपूर्ण मानते तो बेटी के जन्म पर षोक नहीं मनाते. बेटी के घर में उसके हक को नहीं छीनते.
जबकि, लड़के मामले में ऐसा नहीं होता. उसे घर का चिराग माना जाता है यानी वंश आगे बढ़ान वाला. लड़के को उसके नाम के अनुसार महत्व और सम्मान भी मिलता है. लेकिन, लड़की को नहीं. ऐसे में हमें यह सोचकर खुश होने की जरूरत नहीं है कि हम अपनी बेटियों को लक्ष्मी कहते हैं, उन्हें देवी का दर्जा देकर सम्मानित करते हैं क्योंकि असल में हम उनके साथ इसके उलट व्यवहार करते हैं. बेटी के जन्म से ही दुखी होने वाले हम लोग उन्हें एक इंसान जितनी इज्जत भी नहीं बख्शते.