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‘बहन भी भाई की रक्षा करती है, तो क्यों न भाई भी बहन को राखी बांधे’

रक्षाबंधन के त्योहार के वर्तमान स्वरूप और इसमें छुपे लैंगिक भेदभाव पर नारी उत्कर्ष की ​सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक कमला भसीन  से विशेष बातचीत: 

कई भारतीय त्योहारों में देखा जाता है कि पुरुष उनके केंद्र में होते हैं. रक्षा बंधन को देखिए या भाई दूज या फिर करवाचौथ. अब रक्षा बंधन को ही देखें, तो यह बहन भाई दोनों का त्योहार है. दोनों का बराबर महत्व है. लेकिन, इसके पीछे की जो अवधारणा है उसमें अंतर है. बहन राखी बांधेगी और भाई रक्षा का वचन देगा. आखिर क्यों? क्या एक भाई अपनी बहन को राखी के बदले राखी नहीं बांध सकता? बहन क्या रक्षा करने में सक्षम नहीं है? फिर एक ही जन राखी क्यों बांधे?

यही बात भाई दूज में भी देखी जाती है. भाई बहन के बिना क्या भाई दूज हो सकती है? बिल्कुल नहीं हो सकती. फिर इसका नाम सिर्फ भाई दूज क्यों? इसे बहन-भाई दूज भी तो कहा जा सकता है और कहना भी चाहिए.

मैं इन त्योहारों के खिलाफ नहीं हूं. ये बेहद खूबसूरत त्योहार हैं. लेकिन, इनके स्वरूप में कुछ बदलाव होने चाहिए. ऐसे बदलाव जिनसे लैंगिक भेदभाव न दिखाई दे. इन बदलावों के लिए सांस्कृतिक क्रांति की जरूरत है.

कई साल पुरानी बात है. मेरे बेटे को स्कूल से होमवर्क मिला, जिसमें भाई दूज पर निबंध लिखना था. उस वक्त मैंने स्कूल में बात करके पूछा कि हम इस त्योहार का नाम बहन-भाई दूज लिखना चाह रहे हैं. बहन के बिना, क्योंकि भाई दूज नहीं मनाई जा सकती इसलिए त्योहार का नाम भी बदला जाना चाहिए. आपको कोई आपत्ति तो नहीं है. स्कूल वालों ने कहा नहीं. बेटे के होमवर्क में ही सिर्फ यह नाम नहीं दिया बल्कि आज मेरे घर में भी इस त्योहार को बहन-भाई दूज ही कहा जाता है.

इसी तरह रक्षाबंधन है. इस त्योहरा को भी बस थोड़ा मॉडिफाई करने की जरूरत है. मैं सालों से यह कहती आ रही हूं. सिर्फ बहन ही भाई की कलाई पर राखी क्यों बांधे और भाई ही रक्षा का वचन क्यों दे? उपहार देने के बजाय भाई भी बहन की कलाई पर राखी बांधकर बहन से रक्षा का वचन ले, तो यह त्योहार और भी प्यारा होगा.

मैंने चालीस साल पहले इस त्योहार को इसी तरह सैलिब्रेट करना शुरू किया था. मैं और मेरा भाई दोनों ही रक्षाबंधन पर एक-दूसरे को राखी बांधते हैं और एक-दूसरे की मदद के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं. देखा जाए, तो जब से दुनिया शुरू हुई है, तभी से बहनें भाई की रक्षा कर रही हैं और भाई बहनों की रक्षा कर रहे हैं.

मगर, हमारा समाज पितृसत्तात्मक है. हर त्योहार के केंद्र में पुरुषों को रखा जाता है. यह रक्षाबंधन में भी देखने को मिलता है. भाई ही रक्षा का वचन देता है. भाई के बीमार होने पर बहन जब सेवा करती है, वह भी रक्षा है. उसके लिए खाना बनाती है, वह भी एक किस्म की रक्षा है. इसलिए, वह भी सक्षम है. इस बार हर भाई क्यों न उपहार में अपनी बहन को इस रिश्ते का नया रूप भेंट करे.

सबसे खास बात की इससे फायदा दोनों का ही होगा, पुरुषों का भी और महिलाओं का भी. महिलाओं की सुरक्षा करने की पुरुषों की जिम्मेदारी कम होगी और जरूरत की घड़ी में महिलाओं से भी वह सुरक्षा मांग सकते हैं. हालांकि, आज भी वक्त पड़ने पर दोनों एक-दूसरे की मदद करते ही हैं, वह एक तरह की सुरक्षा है. लेकिन, यही बात त्योहारों में भी दिखनी चाहिए. मेरे घर में सब मेरे विचारों को जानते हैं, मैंने शुरुआत की, तो सभी ने सहज रूप से लिया. आज भी भाई दूज और रक्षाबंधन को इसी तरह मना रहे हैं.

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