लड़कियों को सुरक्षा के नाम पर लोग उन्हें घर तक सीमित रखते हैं। बाहरी लोगों से लड़कियों और बच्चियों को खतरे के चलते उन पर ये सब पाबंदियां लगाई जाती हैं लेकिन उस खतरे पर शायद ही कोई गौर करता है, जो लड़कियों को घरों के अंदर होता है। आपको पता नहीं चलता हो पर चाचा, ताऊ, भाई, भतीजे और दूर के अंकल कोई भी आपकी बेटी के लिए खतरा बन सकते हैं। ऐसा होता रहा है और अब भी होता है। ऐसी ही कुछ कड़वी यादों से गुजर चुकीं सुमन और बबीता ने नारी उत्कर्ष को सुनाई अपनी आपबीती:
बात उस समय की है जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। तब मेरी बुआ के बड़े बेटे दिल्ली में काम करने आए थे। कोई और ठिकाना न देखकर मेरे पापा ने उन्हें हमारे घर पर ही रहने के लिए कहा। वह हमारे घर से ही काम पर जाने लगे। धीरे-धीरे मैं और मेरी बहन उनसे घुलमिल गए। वह मुझसे करीब दस साल बड़े थे। मैं उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानती थी और मेरे घरवाले भी उन पर भरोसा करते थे। सब ठीक ही था कि एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। धीरे-धीरे उनके व्यवहार में बदलाव आने लगा। वह हल्की सर्दियों का समय था और मेरी मां समेत आसपास की कुछ औरतें छत पर बैठा करती थीं और मैं नीचे कमरे में पढ़ाई करती थी।
एक दिन मम्मी छत पर चली गई और मैं कमरे में अकेली थी। तभी वो भईया आए और कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद उन्होंने मुझे खींच कर अपनी गोदी में बैठा लिया। वो मुझसे ऐसे लिपट रहे थे जैसे में दो साल की बच्ची हूं। मुझे बहुत असहज लगा तो मैं खुद को छुड़ाकर भाग गई। तब मुझे लगा कि मुसीबत छूटी आगे ऐसा नहीं होगा। पर अब तो उनकी हिम्मत और बढ़ती गई। मेरे अकेले होने से उन्हें रोज मौका मिल गया। वह रोज दिन में आगे लगे। मैं बार-बार मना करती लेकिन वह मेरे करीब आने की कोशिश करते। मुझे बहुत खराब लगता था पर समझ नहीं आता था कि ये ऐसा क्यों कर रहे हैं। ऐसी घटनाओं के बारे में किसी ने कभी कुछ बताया भी नहीं था। मैं बस उनसे बचने की कोशिश करती रहती।
कुछ दिन बाद मैंने सोचा कि मम्मी-पापा को बताऊं लेकिन क्या कहूं ये समझ नहीं आता था। एक सुबह तो हद हो गई। मम्मी एक-दो घंटे के लिए बाहर गई थी। भईया को यह पता था तो वह सुबह ही घर पर आ गए। मैं किसी तरह घर के काम का बहाना करके उनसे बचने की कोशिश कर रही थी। मुझे लगा कि किसी तरह ये समय निकल जाए और मम्मी आ जाए। पर ऐसा नहीं हुआ और फिर से वह मुझे अपनी गोद में बैठाकर गंदी हरकतें करने लगे। अब मेरी सहनशक्ति खत्म हो गई और मैं झटके से खुद को छुड़ाकर रोते हुए घर से बाहर आ गई। मुझे रोता हुआ देखकर वह बहुत डर गए। उन्हें लगा कि अगर किसी ने देख लिया तो मैं रोते हुए सबकुछ बता दूंगी। बस फिर क्या था, वह घर से भाग गए और पूरे दिन वापस नहीं आए। तब मैं चुप तो हो गई लेकिन मैंने सोच लिया था कि अगर उन्होंने फिर से ऐसी हरकत की तो मैं घर में जरूर बता दूंगी। लेकिन, उसके बाद से वह इतना डर गए थे कि फिर से ऐसा करने की हिम्मत नहीं की। लेकिन, एक लंबे समय तक जब भी वह घर पर आए, तो मन में डर बना रहता था।
सुमन शर्मा, चांदनी चैक, दिल्ली
मेरे साथ जो हुआ वह बहुत भयानक तो नहीं था लेकिन इससे अपने करीबियों पर से भरोसा उठने लगा। कुछ साल पहले हमारे मकान में किराए पर एक परिवार रहता था। हम बहन-भाई उनसे काफी घुल-मिल गए थे। वहां रहने वाले अंकल की आदत थी कि वह अक्सर बच्चों को गले लगाकर और चुंबन करके प्यार करते थे। 7-8 साल की उम्र में मुझे यह अजीब नहीं लगता था। मैं इसे उनका प्यार करने का तरीका समझती थी। इसलिए मेरे घरवालों को भी कुछ अटपटा नहीं लगता था। कुछ साल बाद वह परिवार हमारे घर से चला गया पर होली-दीवाली पर वह अंकल हमारे घर आया करते थे। त्यौहार पर जब भी वह आते तो नशे में होते और सामने पड़ते ही गले से लगा लेते और चुंबन लेते। उम्र बढ़ने के साथ मुझे उनका यह व्यवहार बहुत असहज करने लगा लेकिन साल में एक दो बार ही ऐसा होने पर मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
मैं अपने काम और पढ़ाई में काफी व्यस्त थी और उन अंकल का ख्याल भी मेरे जहन में नहीं था। मुझे उनके इरादों का अंदाजा भी नहीं था। उनकी नीयत का मुझे तब पता चला जब मेरे पिता की तबीयत खराब हुई। उन दिनों मेरे पिता अस्पताल में एडमिट थे। जिस दिन वह अस्पताल से आने वाले थे, वह अंकल हमारे घर पर आए। उस समय तक मम्मी-पापा घर नहीं पहुंचे थे और मैं घर पर अकेली थी। मैंने अंकल को बताया कि अभी कोई नहीं है, एक-दो घंटे में सब आ जाएंगे। वह वापस जाने की बजाए बात बढ़ाने की कोशिश करने लगे और मेरे कंधे पर हाथ रख लिया। मैं एक कदम पीछे हट गई पर वो रुकने की बजाए और आगे बढ़े और मेरे गालों को छून लगे और बार-बार पूछने लगे, तो मैं जाऊं क्या, मै जाऊं क्या?
उनकी इस हरकत को देखते हुए मैंने भी उम्र का लिहाज न करके स्पष्टता से कह दिया कि हां, जब सब आ जाएंगे, तब आप आना। मुझसे साफ-साफ यह सुनकर वह चले गए। कुछ घंटों बाद वह फिर से आए। तब तक घर के और लोग भी आ चुके थ। वह घर में घुसते हुए मेरे बीमार पिता के पास नहीं गए बल्कि मेरे पास आकर मेरे कंधे पर लदकर खड़े हो गए और पूछने लगे कि और क्या कर रही हो? मैं वहां से हट गई।
इसके बाद वह पापा के पास बैठे। इस बीच पापा के लिए आॅक्सीजन सिलेंडर खरीदने की बात होने लगी। अंकल ने कहा कि वह मुझे बाइक पर ले जाकर सिलेंडर दिलवा देंगे। मैंने मना कर दिया और कहा कि मेरे पास स्कूटी है, मैं खुद ले आउंगी। फिर भी वे बार-बार एक ही बात रटते रहे। उस दिन मैं उनके व्यवहार से बहुत हैरान हुई। वह हमारे पारिवारिक मित्र हैं और मुझे उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। ये कुछ ऐसी हरकतें थीं जो प्यार करने की आड़ में की गई थीं इसलिए किसी को समझा पाना भी मुश्किल था। फिर भी मैंने इस संबंध में अपने घर में बताकर घरवालों को उन्हें आगाह कर दिया।
बबीता सैनी, मेरठ, उत्तर प्रदेश
नारी उत्कर्ष की राय
हर व्यक्ति को अविश्वास की नजर से नहीं देख जा सकता लेकिन अपनी आंखें खुली रखना भी जरूरी है। इन मामलों में समस्या यह होती है कि अपराधी कोई परिचित ही होता है। उसके प्यार के दिखावे को बहुत गहराई से देखना पड़ता है। वहीं, ऐसे लोग बच्चियों को अपना निशाना बनाते हैं। बच्चियों को परेशानी तो होती है लेकिन वे किसी को बता नहीं पातीं। कैसे बताएं, क्या कहें, कहीं मैं तो गलत नहीं हूं, जैसे कई ख्याल उन्हें घेरे रहते हैं इसलिए वे किसी से कुछ नहीं कह पातीं। कई बार बच्चों को डरा भी दिया जाता है।
ऐसे में माता-पिता की भूमिका काफी बढ़ जाती है। उन्हें न केवल अपने बच्चे के साथ अतिरिक्त करीबी दिखाने वालों पर बल्कि बच्चे के व्यवहार पर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही सबसे अधिक आवश्यक है बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना। उन्हें ’गुड और बैड टच’ के बारे में समझाया जाए। उन्हें बताया जाए कि जब भी वह किसी के छूने से असहज महसूस करें तो बिना डरे तुरंत घर में बताएं। वहीं, माता-पिता को बहुत दृढ़ता से और बच्चे की भावनाओं का ख्याल रखते हुए ऐसे मामलों से निपटना चाहिए। साथ ही बेटी पर पाबंदियां न लगाएं बल्कि अपराधी को सजा दिलाएं।