गुलामी की जंजीर ऐसे ही नहीं टूटती है, उसके लिए शहादत की आवश्यकता होती है. भारत को ब्रिटिश गुलामी से मुक्त कराने के लिए भी लाखों लोगों ने कुर्बानी दी है. इन्हीं शहीदों में से एक थी, प्रीतिलता वाडेदार. नारी उत्कर्ष के इस अंक में महास्त्री प्रीतिलता की हिम्मत, हौसले और शहादत की कहानी पेश की जा रही है, ताकि उनकी शहादत से प्रेरणा ली जा सके.
अप्रतिम साहस और दृढ़ निश्चय वाली प्रीतिलता वाडेदर का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में 5 मई 1911 को चिट्टगांव के ढालघाट गांव में हुआ था. उसके पिता जगबंधु वाडेदर चिट्टगांव म्यूनिसिपलटी में क्लर्क थे. उनकी माता प्रतिभामई देवी गृहणी थी, जिन्होंने प्रीतिलता को राष्ट्रभक्ति का प्रथम पाठ पढ़ाया. घर वाले प्रीतिलता को प्यार से रानी पुकारा करते थे और उनके घर की वही रानी बाद में भारत के लोगों के दिलों पर राज करने वाली रानी बनी, जिसकी शहादत को लोग आज भी नमन करते हैं.
अभावों के बावजूद जगबंधु ने अपनी 6 संतानो की परवरिश में कोई कसर नही छोड़ी और उनकी शिक्षा की यथासंभव उचित व्यवस्था की. प्रीति ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा खस्तगीर गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल से प्राप्त की. उसने 1928 में स्कूल की पढ़ाई खत्म की और उच्च शिक्षा के लिए ईडन कॉलेज, ढाका में प्रवेश लिया. इंटरमिडिएट परीक्षा में उसने ढाका बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया. ईडन कॉलेज में पढ़ते हुए प्रीति ने कई सामाजिक कार्यक्रमो में हिस्सा लिया. वह लीला नाग के नेतृत्व वाली श्री संघ की सदस्य भी बनीं तथा इसकी सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लिया.
ईडन कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कोलकाता के बेथुम कॉलेज गई, जहां उसने स्नातक की पढ़ाई पूरी की. अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने चिट्टगांव के एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी करना शुरू कर दिया, जहां से उसके क्रांतिकारी जीवन की शुरूआत हुई.
शहादत की राह
पूरे भारत में आजादी के लिए आंदोलन हो रहे थे. कुछ लोग अहिंसक क्रांति में विश्वास करते थे, तो कुछ हिंसात्मक विद्रोह के द्वारा आजादी हासिल करना चाहते थे. एक तरह से पूरे भारत में क्रांति की ज्वाला भड़क रही थी. ब्रिटिश गुलामी की बेड़ियों को काटने के लिए संगठन बनाए जा रहे थे.
इसी समय सूर्य सेन ने चिट्टगांव (बंगाल, अभी बांगलादेश) में एक हिंसात्मक क्रांति की योजना बनाई. मास्टर दा के नाम से जाने जाने वाले सूर्यसेन कभी कांग्रेसी थे और असहयोग आंदोलन में अपना योगदान दिया था, लेकिन 1930 तक वे हिंसात्मक क्रांति के द्वारा आजादी हासिल करने की विचारधारा में विश्वास करने लगे थे. उन्होंने क्रांतिकारियों को अपने साथ लाना शुरू कर दिया. कई युवक उनके साथ जुड़े और कुछ युवतियां भी उनके दल में शामिल हुई. इन्हीं में से एक युवती थी, प्रीतिलता वाडेदर.
प्रतीलता उस समय चिट्टगांव के एक सेकेंडरी स्कूल नंदनकानन अपर्नाचरण स्कूल में अध्यापिका थी. यह अंग्रेजी माध्यम का स्कूल था और प्रीति को यहां हेडमिस्ट्रेस नियुक्त किया गया था. बचपन से ही प्रीति का झुकाव राष्ट्रवादी आंदोलन में रहा था. वह ब्रिटिश गुलामी से देश को आजाद कराने का सपना देखा करती थी. रानी लक्ष्मी बाई के त्याग और बलिदान से वह बहुत प्रभावित थी और उन्हें ही आदर्श मानती थी. प्रीति के अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी, लेकिन उसे एक मौका और सही आधार की तलाश थी, जहां से अपने अंदर की भावना को वह पटल पर ला सके. प्रीतिलता को सूर्य सेन तथा उनके सहयोगियों के संगठन और उद्देश्यों के बारे में जानकारी थी. उनकी बचनपन की एक साथी कल्पना दत्त उस समय सूर्य सेन के गुट में शामिल थीं, जिससे प्रीति को इस संगठन के बारे में जानने में अधिक मुश्किल नहीं आई. सूर्य सेन को भी प्रीति के बारे में जानकारी थी.
प्रीति ने एक दिन सब कुछ छोड़कर इस क्रांतिकारी गुट में शामिल होने का मन बना लिया. 13 जून 1932 को वह सूर्य सेन तथा निर्मल सेन से मिली और अपने संकल्प के बारे में बताया. हालांकि, कुछ लोग लड़कियों को अपने गुट में शामिल करने का समर्थन नहीं कर रहे थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि लड़कियां भावुक तथा कमजोर होती हैं और उनके पकड़े जाने पर वे आसानी से हमारी योजना के बारे में पुलिस को बता देंगी. लेकिन सूर्य सेन दूरदर्शी और अद्भुत नेतृत्व क्षमात वाले व्यक्ति थे. उन्हें नारी शक्ति पर पूरा विश्वास था, साथ ही उनका यह भी मानना था कि हथियार आदि लाने, ले जाने में महिलाओं का बहुत सटिक उपयोग हो सकता है क्योंकि उनके ऊपर सबसे कम शक किया जाएगा.
कुछ समय तक टाल मटोल करने के बाद आखिरकार प्रीति के दृढ़ निश्चय ने सूर्य सेन और उनके साथियों को उन्हें अपने दल में शामिल करने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद शुरू हुआ प्रीति का क्रांतिकारी जीवन, जिसकी समाप्ति उसकी शहादत के साथ हुई. सूर्य सेन ने चिट्टगांव में एक बड़े विप्लव की योजना बनाई थी, जिसके अनुसार वहां के शस्त्रागार, टलीग्राफ ऑफिस, पोस्ट ऑफिस, क्लब आदि पर हमला कर चिट्टगांव को अंग्रेजी दासता से मुक्त करना था, ताकि यह दूसरे क्षेत्रों के लिए भी प्ररेणास्रोत बने और यह साबित किया जा सके कि शस्त्र विद्रोह से आजादी हासिल की जा सकती है. प्रीतिलता ने इन छापों में भाग लिया और एक क्रांतिकारी का प्रचंड रूप सामने आया. उसने टेलीफोन, टेलीग्राफ आदि ऑफिस पर हुए हमले में भाग लिया तथा जलालाबाद के संघर्ष में बम बारूद पहुंचाने की जिम्मेदारी ली और इसे बखुबी निभाया.
साथियों की खातिर दे दी जान
अब प्रीति को एक बड़ी जिम्मेदारी निभानी थी. सूर्य सेन चिट्टगांव के पहाड़तली यूरोपीयन क्लब पर हमला करने की योजना बना रहे थे. इस क्लब के दरवाजे पर एक बोर्ड लगा हुआ था, जिसके ऊपर लिखा था कि कुत्ते और भारतीयों का प्रवेश वर्जित है. सूर्य सेन इस हमले की जिम्मेदारी किसी महिला को देना चाहते थे. उनके सामने प्रीति के साहस भरे कामों की सूची थी. उन्होंने प्रीति से इसके बारे में चर्चा की और प्रीति तुरंत तैयार हो गई. जिम्मेदारी मिलने के बाद उसने इस हमले की तैयारी शुरू कर दी.
इस हमले के लिए 23 सितंबर 1932 का दिन तय किया गया. सभी क्रांतिकारियों को यह हिदायत दी गई कि कोई जिंदा न पकड़ा जाए. सभी को पोटैशियम सायनाड दिया गया ताकि अगर पकड़े जाएं, तो अपनी जान दे दें ताकि अंग्रेजों के हाथ कोई सुराग न लग पाए. प्रीति के नेतृत्व में क्रांतिकारियों का एक जत्था गुलामी के प्रतीक यूरोपीयन क्लब पर हमला करने को तैयार था. इन लोगों ने यूरोपीयन क्लब पर हमला किया. वहां करीब 40 लोग थे, जिसमें कुछ पुलिस अधिकारी भी थे, जिनके पास रिवॉल्वर थी. प्रीति ने अपने दल को तीन हिस्सों में बांटा और क्लब पर हमला कर दिया. दोनों ओर से गोलीबारी हुई जिसमें कई अंग्रेज अधिकारी मारे गए. इस हमले में एक क्रांतिकारी महिला शहीद हो गई तथा चार करीब दस ग्यारह क्रांतिकारी घायल हो गए. घायल होने वालों में प्रीति भी थी. उसे भी गोली लगी थी, लेकिन, घाव इतना गहरा नहीं था कि जान जा सके.
इस घटना की जानकारी जंगल में आग की तरह फैल गई. हालांकि, प्रीति वहां से निकल गई थी लेकिन पुलिस से बचना उसके लिए मुश्किल हो रहा था. घायल प्रीति ने पुलिस के हाथ लगने के बजाय पोटेशियम सायनायड खाकर अपनी जान देना सही समझा, क्योंकि उसे पता था कि जिंदा पकड़े जाने पर उनके कई साथियों की जान आफत में पड़ जाएगी. दूसरे दिन पुलिस को उसका शव मिला और पोस्टमार्टन रिपोर्ट में यह पता चला कि उसकी मौत गोली से नहीं बल्कि जहर से हुई है. इस तरह एक वीर क्रांतिकारी ने अपने देश की आजादी की राह में जान की कुर्बानी दे दी.
प्रीतिलता वाडेदर महिलाओं के लिए प्ररेणा स्रोत हैं. उन्होंने यह साबित कर दिया कि किस भी काम में महिला पुरुषों की बराबरी कर सकती है, उसके कंधों से कंधा मिलाकर चल सकती है. उन्होंने स्त्री शक्ति का उदाहरण पेश किया और अपने नेतृत्व तथा साहस से पूरी नारी जाति को सम्मानित किया है. प्रीति ने राष्ट्र के सम्मान के लिए अपनी जान दी और यह संदेश छोड़ गई कि देश के सम्मान की रक्षा के लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की बलि आवश्यक है. अमर शहीद प्रीतिलता आज भी महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं.