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सम्मान और शिक्षा के लिए जूझतीं सेक्स वर्कर्स की बेटियां

समाज द्वारा सेक्स वर्कर को दी गई जिल्लत उनके बच्चों को विरासत में मिलती है. बच्चा अगर लड़की हो तो मां का काम भी उसकी नियती बन जाती है. मां के न चाहने पर भी समाज अपनी निष्ठुरता और उपेक्षा से उसे अंधेरी गलियों में जाने को मजबूर कर देता है:

मुंबई की रहने वाली सुमैया शेख पत्रकार बनना चाहती हैं. सुनने में तो ये एक सामान्य लड़की के सपने लगते हैं परंतु सुमैया की जिंदगी बिल्कुल भी सामान्य नहीं. वैश्यावृति के दलदल में फंसी उसकी मां के प्रयासों से ही सुमैया आज ये सपने देखने और उन्हें पूरा करने के काबिल बन पाई है.

हैदराबाद की रहने वाली सुमैया की मां को बहला फुसलाकर मुंबई में एक कोठे पर बेच दिया गया था. अपनी छोटी सी बच्ची के साथ वह अकेली यहां फंस गई थी. इस कोठे रूपी जेल में बंद उस औरत के पास वैश्यावृति अपनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था. उसने किसी तरह इस नर्क में अपनी बच्ची को पाला.

वैश्यावृति से निकल पाने की उसकी उम्मीद और हिम्मत तो जवाब दे गई थी लेकिन अपनी बच्ची को एक सम्मानजनक जीवन देने की उसकी चाह अब भी प्रबल थी. सुमैया की मां नहीं चाहती थी कि उसकी बच्ची भी सेक्स वर्कर बन जाए. वह जानती भी थी कि अगर उसने कोशिश नहीं की तो ऐसा हो जाना मुश्किल नहीं होगा. अपनी बच्ची को अच्छा जीवन देने के लिए मां ने सुमैया को अलग-अलग गैर-सरकारी संस्थाओं में पढ़ाकर अच्छा माहौल देने की कोषिष की लेकिन बच्ची को कहीं समानता और सामान्य जीवन नहीं मिल पाया.

फिर भी मां की खोज खत्म नहीं हुई. आगे उन्हें मुंबई के ही कमाथीपुरा में कार्यरत गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) ‘क्रांति’ का पता चला. उस एनजीओ की कार्यशैली से आश्वस्त होकर उन्होंने सुमैया को वहां भेज दिया. आज सुमैया उन अंधेरी और गुमनाम गलियों से दूर अपनी मर्जी से पढ़ाई कर रही है. हालांकि, उसकी मां अब भी सेक्स वर्कर का काम करती हैं परंतु इसकी छाया से उनकी बच्ची दूर है.

सुमैया यहां साल 2010 में आई थी. तब से वह एनजीओ में ही रहकर पढ़ाई कर रही है. वह कहती है कि यहां उसे परिवार जैसा लगता है. इससे पहले वो जहां भी रही थी वहां सेक्स वर्कर की बेटी होने के कारण उससे अलग व्यवहार किया जाता था. सुमैया की तरह कुछ और लड़कियां भी हैं, जो इस एनजीओ के माध्यम से षिक्षा पा रही हैं. केवल शिक्षा ही नहीं वह एक सभ्य और सुरक्षित माहौल भी पाती हैं.

 मासूम रानी की कहानी

यहां रहने वाली 16 साल की रानी बहुत खुश होकर बताती है, ‘वैसे मेरा नाम जयश्री है लेकिन मेरे मम्मी-पापा प्यार से रानी बोलते हैं. इसलिए मुझे सभी रानी ही बुलाते हैं.‘ रानी स्कूल पढ़ रही है और वह एक्टर बनना चाहती है. मूल रूप से कर्नाटक की रहने वाली रानी की मां भी एक सेक्स वर्कर थीं. उनके पिता की मौत के बाद बच्चों को संभालना मुश्किल हो गया था और वह नहीं चाहती थीं कि उनकी बच्ची भी सेक्स वर्कर के काम में आए. तब उन्हें ‘क्रांति’ के बारे में पता चला और वह अपनी बेटी का भविष्य संस्था के हवाले कर गईं.

रानी यहां पांच सालों से रह रही है और काफी खुश है. आज वह आजादी अनुभव करती है. वह बताती है, ’पहले मैं जहां रहती थी, वहां घर के अंदर ही रहना होता था. रेड लाइट एरिया होने के कारण नीचे भी जाना हो तो भाई के साथ ही जाती थी. यहां पर ऐसा नहीं है और कई नए विकल्प भी सामने आए हैं.’ एक अन्य लड़की अश्मिता रविंद्र कट्टी भी यहां ढाई साल से रह रही है और स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुकी है.

प्रतिभा पर ध्यान नहीं दिया जाता

दरअसल, हमारे समाज से सेक्स वर्कर्स को घृणा और अपमान के अलावा कुछ नहीं मिलता. उनके बच्चों खासकर उनकी बेटियों की भी यही नियती मानी जाती है. अन्य बच्चों की तरह उन्हें अच्छी शिक्षा और सुनहरा भविष्य बनाने का मौका नहीं मिलता.

‘क्रांति’ की सहसंस्थापक बानी दास बताती हैं कि संस्था की स्थापना से पहले वह जिस एनजीओ में काम करती थीं, वहां भी सेक्स वर्कर्स की बेटियों के लिए ही काम होता था. परंतु वहां एक बात उन्हें हमेशा खलती थी कि इन लड़कियों को रेस्क्यू करके सिर्फ आचार, पापड़ आदि बनाना सिखाया जाता है. इससे वो कमाने लायक तो हो जाती थीं लेकिन षिक्षित नहीं हो पाती थीं. इस आगे बढ़ चुकी प्रतियोगी दुनिया में बिना पढ़ाई के वो कैसे गुजारा कर पातीं या वापस मां के काम में चली जातीं. तब कहां न्याय कर पाते हम उनसे.

रेस्क्यू करके लाई गई 15 साल की माया ने भी इसी कमी को अनुभव किया. वह बहुत अच्छी पेंटिंग बनाती थी लेकिन उसके इस हुनर के लिए कोई जगह नहीं थी. बानी दास और उनके दोस्त रॉबिन चैरसिया ने माया के लिए एक घर लिया और ड्रॉइंग की क्लास कराई. इसी कमी को ध्यान में रखकर बानी दास, रॉबिन चैरसिया, माया और एक अन्य लड़की टीना ने मिलकर साल 2010 में क्रांति एनजीओ की शुरुआत की.

आज करीब पंद्रह लड़कियां क्रांति के पास रह रही हैं. यहां उन्हें स्कूल में प्रवेश दिलाया जाता है और उनकी रहने, खाने, पीने आदि की जरूरतों को पूरा किया जाता है. इतना ही नहीं बच्चियां अपनी मांओं को जानती हैं और उनसे मिलती भी रहती हैं. ये लड़कियां इतनी मजबूत और समझदार हैं कि उन्हें न तो अपनी मां के काम पर शर्म है और न ही अपने जन्म का अफसोस. वे तो बस कुछ कर दिखाना चाहती हैं.

इन लड़कियों को उनकी रूचि के अनुसार डांस, एक्टिंग, म्यूजिक और पेंटिंग आदि कलाओं का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. बानी दास बताती हैं, ‘कुछ लड़कियां हमें बड़ी उम्र में मिलती हैं उन्हें स्कूल जाने में भी दिक्कत होती है. फिर षोषण का षिकार हुई कोई लड़की मानसिक रूप से भी स्थिर नहीं होती. आत्महत्या तक करने की कोषिष करती हैं. उसे घर में काउंसलिंग कराकर बहुत संभालना पड़ता है. इसलिए हमने सोचा की क्यों न इनके दूसरे हुनर को भी तराषकर इन्हें आगे बढ़ाया जाए.‘

कभी स्कूल छोड़ा तो कभी घर

कोई गलती न होने पर भी इन बच्चियों को लोगों की उपेक्षा और उलाहना का शिकार होना पड़ता है. लोग अपने बच्चों को उनसे घुलने-मिलने नहीं देते. तीखी नजरों का सामना सेक्स वर्कर्स के लिए काम करने वाले को भी करना पड़ता है. बार-बार घर बदलने से परेशान बानी दास बताती हैं कि अभी वे लोग किराए पर रहते हैं. लेकिन जैसे ही उनके काम के बारे में पता चलता है तो घर खाली करने को बोल दिया जाता है. लोग कमरा देने में भी हिचकते हैं. इतना ही नहीं स्कूल में बच्चों के व्यवहार से तंग आकर लड़कियां स्कूल जाने तक से मना कर देती हैं. फिर उन्हें ओपन से पढ़ाया जाता है और घर में ट्यूशन देते हैं. बच्चों को अपनी मां के बारे में बताने तक से डर लगता है.

सुमैया शेख खुद बताती हैं, ‘पहले के स्कूल में मैं अपनी मम्मी के काम के बारे में नहीं बताती थी. मुझे डर लगता था कि बच्चे मुझे सेक्स वर्कर की बेटी कहकर चिढ़ाएंगे और अलग कर देंगे.‘ इन मुश्किलों के बावजूद भी कई जगहों से आर्थिक सहायता मिलने के कारण संस्था और बच्चे अपने उद्देष्य को पाने में जुटे हुए हैं.

इन लड़कियों की इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण उनकी मां का वैश्यावृति में होना नहीं बल्कि समाज का दुर्व्यवहार है. लोगों में यह पूर्वाग्रह होता है कि सेक्स वर्कर की बेटी है तो वह खुद भी इन कामों में लिप्त होगी या इनके संपर्क में आकर उनके बच्चे भटक जाएंगे.

इसके चलते जो लड़कियां इस नर्क से बच भी सकती थीं, वे भी समाज से उपेक्षित होकर इसी पेशे में चली जाती हैं. जबकि इन बच्चियों को प्यार और अच्छे माहौल की जरूरत है. अवसर मिलें तो किसी भी दूसरे बच्चे के तरह ये भी डॉक्टर, इंजीनियर, पेंटर, एक्टर औैर कोई अधिकारी बन सकती हैं.

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