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नजरिया बदलने की जरूरत है

there is need to change our thinking

किसी भी अपराध के प्रति चिंता लाजिमी है, लेकिन केवल चिंता किसी समस्या का समाधान नही हो सकता. समस्या के समाधान का रास्ता चिंता के साथ-साथ उसके ऊपर चिंतन से निकलता है. गंभीर चिंतन, जिससे समस्या के कारणों की जड़ तक पहुंचा जा सके.

स्त्रियों के साथ होने वाला बलात्कार भी गंभीर अपराध है. जब भी बलात्कार की कोई घटना सामने आती है, तो उसके ऊपर लोगों के बीच चर्चा होती है, मीडिया में चर्चा होती है, संसद और विधान सभाओं में चर्चा होती है, लेकिन चर्चा का स्तर अपेक्षा के अनुकूल नही होता. चर्चा केवल उस घटना के इर्द-गिर्द घूमती है और अपराधी को दंडित करने, केवल उस घटना के कारणो तक पहुंचने की कोशिश की जाती है तथा उससे जुड़े कारणो के निदान की बात की जाती है, लेकिन क्या उस घटना विशेष पर चर्चा और उसके समाधान के उपायों से इस घिनौने कृत्य को रोकने या कम करने का रास्ता निकालना संभव है?

मुझे लगता है कि बलात्कार जैसी घटना के कारणों पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए. इसके लिए न केवल कानूनी स्तर पर प्रयास होने चाहिए, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी उतने ही गंभीर प्रयास करने की जरूरत है. बलात्कार न केवल एक कानूनी समस्या है, बल्कि यह एक सामाजिक समस्या भी है. इस अपराध के पीछे की मानसिकता को पूरी तरह समझे बिना इसके कारणों को खोजना मुश्किल है.

बलात्कार के कारणों को समझने और उसे कम करने के उपायों पर चिंतन करने के साथ-साथ इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि सजा किसे दी जा रही है. इस अपराध में शामिल अपराधी को सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी न किसी स्तर पर पीड़िता को भी इसकी सजा भुगतनी पड़ती है. पीड़िता के प्रति समाज का नजरिया अन्य अपराधों से पीड़ित व्यक्ति से कुछ अलग होता है. इसके पीछे के कारणो को भी ढूंढना चाहिए, उसके ऊपर चर्चा होनी चाहिए और साथ ही उस कारण की समाप्ति के लिए गंभीरता से प्रयास किए जाने चाहिए.

बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को कानूनी स्तर पर मिलने वाली सजा को बढ़ाने के लिए तो समय-समय पर स्वर उठते रहते हैं, लेकिन जहां तक पीड़िता को मिलने वाली सजा की बात है, तो इसके लिए किए जाने वाले प्रयास सकारात्मक से ज्यादा नकारात्मक होते हैं. पीड़िता के प्रति सहानुभूति दिखाई जाती है, उसके जीवन के नष्ट होने की बात की जाती है, ऐसा बोला जाता है, जैसे जिसके साथ बलात्कार हुआ है, उसके लिए आगे का जीवन दूभर हो गया है. उसके प्रति समाज का नजरिया बदल जाता है, लोगों के बीच उसके लिए चर्चा इस बात की होती है कि पीड़िता का जीवन बर्बाद हो गया. अब वह क्या करेगी? कौन उसे स्वीकार करेगा?

यहां तक की मीडिया, संसद और विधायिकाओं में भी कुछ ऐसी ही चर्चा होती है तथा कई महत्वपूर्ण लोगों का बयान भी आता है कि जिस लड़की के साथ बलात्कार हुआ, उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई है, मानो उसकी मानसिक मौत हो गई है. ऐसे में उन लड़कियों की स्थिति, जिनके साथ बलात्कार हुआ है, जो पहले से डरी हुई है, बहुत बुरी हो जाती है. वे खुद भी इस बात को स्वीकार करने लगती है कि उसके साथ जो हुआ, उसके बाद उसका जीवन नारकीय हो गया है.

सबसे पहले इस तरह की नकारात्मक चर्चाओं पर विराम लगाने की आवश्यकता है. बलात्कार के प्रति समाज के नजरिए को बदलने की कोशिश करनी चाहिए. जब भी बलात्कार पर चर्चा हो, तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि पीड़िता के प्रति नकारात्मक विचार नहीं रखे जाएं, चाहे उसमें सहानुभूति दिखाने की कोशिश ही क्यों न की गई हो. इससे न केवल उन स्त्रियों के मन में भय उत्पन्न होता है, जिसके साथ ऐसी घटना घटी है, बल्कि पूरी नारी जाति के मन में भय व्याप्त हो जाता है.

उन्हें ऐसा लगता है कि अगर ऐसी दुर्घटना उनके साथ हो गई, तो उनका शेष जीवन जीने के लायक नही रहेगा और इसी मानसिकता के कारण कई पीड़िता आत्महत्या तक कर लेती हैं, क्योंकि उनके ऊपर सामाजिक तिरस्कार का भय इतना अधिक हावी होता है कि उनके अंदर अपना शेष जीवन जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है.

इस तरह बलात्कार के प्रति चिंता के साथ-साथ चिंतन करने की आवश्यकता है. इसके कारणो की जड़ तक पहुंचना जरूरी है. सामाजिक स्तर पर एक परिवर्तन चाहिए. पुरूषवादी समाज को महिलाओं के प्रति नजरिए में बदलाव लाना होगा, महिला के चरित्र को पुनर्परिभाषित करना होगा. जिस तरीके से कानून में परिवर्तन करने, सजा के प्रावधानो को प्रभावी तरीके से लागू करने, भयोत्पादक सजा दिलाने की बात की जाती है, उसी तरह और उसी स्तर पर समाज में महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए.

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