आज दफ्तरों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी काम करने लगी हैं। वह भी कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और अपनी क्षमताओं का परिचय दे रही हैं। वह आॅफिस में किसी तरह के काम में न पीछे रहती हैं और न रहना चाहती हैं। यहां तक की प्रत्येक माह पीरियड्स जैसी तकलीफदेह स्थिति में भी वे दफ्तर के काम पर प्रभाव नहीं पड़ने देतीं। समान कार्य से लकर समान वेतन तक महिलाएं धीरे-धीरे अपने सभी अधिकारों को लेकर जागरुक हो रही हैं। फिर भी महिलाओं को आॅफिस में साॅफ्ट नजरिए से देखा जाता है। उनके और पुरुषों के बीच व्यवहार में साफ अंतर होता है। उन्हें संबोधित करने के तरीकों में या जिम्मेदारी देने में लैंगिक आधार पर अंतर साफ देखा जा सकता है।
पेप्सीको कंपनी की सीईओ इंद्रा नूई भी इस ओर लोगों का ध्यानाकर्षित कर चुकीं हैं। उन्होंने कहा था कि मुझे ‘स्वीटी’ और ‘हनी’ कहलाए जाने से नफरत है। कार्यस्थल पर महिलाओं को इस तरह के नामों से बुलाए जाने की बजाय उन्हें पूरा सम्मान दिया जाना चाहिए और एक व्यक्ति के नाते उनके नाम को इज्जत दी जानी चाहिए। उन्होंने 9 अप्रैल को ‘वीमन इन द वर्ल्ड’ समिट में बोलते हुए कहा था, ‘हमारे साथ भी पुरुषों जैसा ही बर्ताव किया जाना चाहिए। जब भी मुझे स्वीटी और हनी कहा जाता था तो यह मुझे बहुत बुरा लगता था। हमारे साथ एग्जिक्यूटिव्स की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिए। स्वीटी, हनी और बेब जैसे नामों से हमें नहीं बुलाया जाना चाहिए। इस स्थिति में बदलाव आना चाहिए।’
नूई ने यह भी कहा था कि महिलाएं बीते कुछ सालों से ‘क्रांति के मोड’ में हैं। वह पुरुषों के क्लब में प्रवेश कर चुकी हैं और वेतन में बराबरी की मांग कर रही हैं। महिलाओं ने डिग्री, स्कूलों में अच्छे ग्रेड्स और अन्य उपलब्धियों के आधार पर कार्यस्थल पर प्रवेश किया है। इससे उनके समकक्ष उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। नूई ने एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। इस अंतर को अन्य महिलाएं भी कार्यस्थल पर अनुभव करती हैं। लेकिन, समस्या यह भी है कि महिलाएं खुद इस व्यवहार में छिपे भेदभाव को भांप नहीं पातीं और इसका विरोध नहीं करतीं। कई बार विरोध करने के बारे में सोचती भी हैं तो ये सोचकर चुप हो जाती हैं कि कहीं लोग उन्हें अतिप्रतिक्रियावादी न समझें। लेकिन, अगर महिलाएं ऐसे साॅफ्ट व्यवहार के पीछे के कारण और परिणाम पर गौर करेंगी तो शायद विरोध किये बिना नहीं रह पाएंगी।
कमजोर छवि में बांधने का प्रयास
स्वीटी, हनी, क्यूटी, ब्यूटीफुल जैसे शब्द ऐसे तो सुंदरता की प्रशंसा स्वरूप कहे जाने वाले शब्द हैं। इन्हें कहना अटपटा नहीं लगता और इन्हें सुनकर अच्छा लगना भी स्वाभाविक हैं। लेकिन, जब इन शब्दों का उपयोग कार्यस्थल पर आपके नाम की जगह किया जाता है, तो उसके मायने बदल जाते हैं। इनका मतलब यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ तो नहीं होता लेकिन इनके इस्तेमाल से आपके व्यक्तित्व के बदले आपका शरीर केंद्र में आ जाता है। किसी व्यक्ति का नाम लेने से उस व्यक्ति की पहचान बनती है लेकिन स्वीटी और हनी जैसे शब्द केवल खूबसूरती को इंगित करते हुए व्यक्ति की छवि को कमजोर बना देते हैं। एक सख्त मिजाज और मजबूत व्यक्ति के लिए शायद ही कभी ऐसे शब्द इस्तेमाल होते देखा होगा। एक पेशेवर व्यक्ति से भी अनुशासनप्रियता और निर्णय क्षमता की उम्मीद होती है। इसके लिए मानसिक रूप से मजबूत होना जरूरी है। इसलिए नूई ने भी कहा है कि महिलाओं का एक एग्जिक्यूटिव के तौर पर सम्मान करें। ये लचीले शब्द महिलाओं की मजबूत और निर्णायक छवि नहीं बनने देते। ये व्यवहार समाज द्वारा महिलाओं के लिए बनाए गए खूबसूरती के दायरे से उन्हें बाहर नहीं निकलने देते।
इन शब्दों के अलावा महिलाओं के साथ व्यवहार में भी दिखावटी कोमलता दिखाई जाती है। कई बार आॅफिस में देर हो जाने पर यह कह दिया जाता है कि अरे महिला हैं, उन्हें तो जल्दी जाने दो। आखिर महिला का जल्दी जाना क्यों जरूरी है? अगर वह घर से बाहर निकली है तो हर परिस्थिति के लिए तैयार होकर ही निकली है। आॅफिस में भी उसे बाहर के अपराध का डर दिखाया जाएगा तो आॅफिस या घर में बंद होने में क्या अंतर रह जाएगा। वे बड़ी जिम्मेदारियां कैसे संभालेंगी। कई बार महिला की इच्छा न होने पर भी उसे जल्दी जाने के लिए कह दिया जाता है और पुरुष को जाने की इच्छा होने पर भी जबरदस्ती रोक लिया जाता है। लेकिन, सुरक्षा के नाम पर जब महिलाएं इस सुविधा को स्वीकार लेती हैं तो तुरंत ही उन्हें अक्षम और कामचोर करार दे दिया जाता है। लोग यह कहने से नहीं चूकते कि औरतों को तो आॅफिस से भागने की पड़ी होती है। वो कहां देर तक रुकती हैं। यहां तक की महिलाओं को इसी आधार पर बड़ी जिम्मेदारी तक नहीं दी जाती क्योंकि वह देर रात तक रुककर काम नहीं कर पाएगी। महिलाओं को इस सुविधा की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
इसके अलावा महिलाओं का परिचय देते समय भी बेवजह उनकी सुंदरता की तारीफ जाती है। जैसे स्त्री का सुंदरता के बिना कोई अस्तित्व ही नहीं। अगर आप दफ्तर में हैं और परिचय में तारीफ ही करनी है तो क्यों नहीं उस महिला के कार्य और उपलब्धियों पर बात की जाए? वह भी एक कर्मचारी है न कि कोई माॅडल जो अपनी संुदरता की तारीफ सुनने के लिए आॅफिस आई है।
शारीरिक पक्ष पर अधिक ध्यान
गौर करने वाली बात यह भी है कि महिलाएं पुरुषों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करतीं। यहां तक कि पुरुष खुद किसी दूसरे पुरुष के लिए ऐसे शब्द उपयोग नहीं करता तो महिलाओं के साथ ही ऐसे शब्दों और तरीकों का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? दरअसल, हमारे समाज ने महिलाओं का काम घर संभालना और सुंदर दिखकर पुरुष की कामेच्छाओं की पूर्ति करना ही तय किया है। स्त्री के दिमाग को नहीं बल्कि शरीर को केंद्र में रखा गया है। धर्म में भी औरत को ऐसी वस्तुओं के समकक्ष रखा गया है जो केवल उपभोग किए जाने के लिए बनी हैं। हमेशा से औरत के लिए खूबसूरती और मर्द के लिए अर्थोपार्जन करना जरूरी माना गया है। इसीलिए बचपन से लड़की को घर के काम में निपुण बनाने के साथ-साथ उसकी सुंदरता पर भी बहुत जोर दिया जाता है। खुद मां ही उसे सजना-संवरना सिखाती है। पतला-दुबला फिगर बनाने के लिए भी लड़कियों पर ज्यादा दबाव होता है। उनके लिए ही मेकअप के तरह-तरह के प्रसाधन बनाए गए हैं।
अब सदियों से जिसे एक कोमल वस्तु के तौर पर देखा गया हो उसे शक्तिशाली व्यक्ति के तौर पर स्वीकार कर पाना आसान नहीं। पुरुष वर्ग के लिए स्त्री को अपने समकक्ष सहन कर पाना मुश्किल है। उसके जहन में आज भी स्त्री की छवि एक भोग्य वस्तु की तरह है। अपने स्वार्थ के चलते पुरुष इस छवि को मिटाने का इच्छुक भी नहीं है। इसलिए आॅफिस में काम करने वाले महिलाओं को कोमलता दर्शाने वाले शब्दों से पुकारकर बार-बार उन्हें उनकी जगह याद दिलाई जाती है। ये आपकी प्रशंसा नहीं होती और न किसी का प्यार, यह तो चाह है औरत को कमजोर और थाल में सजे हुए खाने की तरह देखने की।
लड़कियों को यह बात समझनी होगी और इस व्यवहार का विरोध करना होगा। यह मसला समानता का है। पुरुष की कार्यकुशलता और व्यक्तित्व को मिलने वाला सम्मान औरत को भी क्यों न मिले? क्यों वह हमेशा एक बुद्धिहीन शरीर की तरह देखी जाए? औरत घर जैसी आरामदायक जगह से निकलकर संघर्ष करने निकली है तो उसमें हौसले और कुशलता की कमी नहीं। उनकी काबिलियत भी समानता की अधिकारी है।
समान कार्य और समान वेतन
इंदिरा नूई ने अपने कथन में समान वेतन का मसला भी उठाया था। उनका कहना था, ‘हमने कार्यस्थल पर क्रांति की राह में अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। इसलिए हमें वेतन में समानता चाहिए, जब तक हमें यह समानता नहीं मिलती है, तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा।’ समान वेतन ही नहीं बल्कि समान कार्य का मसला भी हमेशा से विवाद में रहा है। आज भी महिलाओं को छोटे और बड़े स्तर पर समान पद के लिए समान वेतन नहीं मिलता। लोगों की मिथ्या धारणा है कि स्त्री, पुरुष के समान काबिलियत नहीं रखती। इस मिथ्या धारणा की वजह यही है कि पुरुष हमेशा से खुद को स्त्री से श्रेष्ठ मानता आया है। इसी कारण बिना कार्यक्षमता परखे स्त्री को बड़ी जिम्मेदारियों से भी मरहूम रहना पड़ता है, जो उसकी तरक्की में बाधा बनता है। इसके अलावा समान वेतन न देकर उनका शोषण भी किया जाता है। इसलिए समानता और सम्मान की ये लड़ाई महिलाओं को पूरी ताकत से लड़नी होगी।
जब भी मुझे स्वीटी और हनी कहा जाता था तो यह मुझे बहुत बुरा लगता था। हमारे साथ एग्जिक्यूटिव्स की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिए। कार्यस्थल पर महिलाओं को इस तरह के नामों से बुलाए जाने की बजाय उन्हें पूरा सम्मान दिया जाना चाहिए।
– इंदिरा नूई, सीईओ, पेप्सीको