वेश्यावृत्ति के दलदल में फंसी महिलाएं यहां स्वेच्छा से नहीं आतीं. कुछ आर्थिक मजबूरी के चलते इस नारकीय ‘पेशे’ में हैं, तो कुछ को नौकरी के झांसे में दलालों के हाथों बेच दिया गया है. धोखाधड़ी और मजबूरी की मार के साथ-साथ यहां एक और बड़ी मजबूरी बनी है मातृत्व. किस तरह एक मां के बच्चे को बंधक बनाकर उसे जिस्मफरोशी के धंधे में भेज दिया जाता है. इसी से पर्दा उठा रहा है नारी उत्कर्ष का यह आलेखः
नेपाल के गौरीगंज की रहने वाली सुंतली फरवरी 2010 में जिंदगी संवारने के लिए नौकरी की तलाश में घर से निकली थी. साथ में उसका पांच साल का बेटा भी था. सुंतली को उसके गांव का ही एक शख्स नौकरी दिलाने का झांसा देकर दिल्ली लाया था.
शुरुआती दो दिन सुंतली को गाजियाबाद स्थित लोनी के एक घर में काम दिया गया, लेकिन महज दो दिन बाद ही अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर उसे मेरठ पहुंचा दिया गया. मेरठ में सुंतली को कबाड़ी बाजार स्थित एक कोठे पर पहुंचा दिया गया. काम दिलाने के नाम पर घर से लेकर आया शख्स उसे 20 हजार रुपए में कबाड़ी बाजार के कोठे पर बेच गया.
कहानी सिर्फ नौकरी के नाम पर आंख में धूल झोंकने तक नहीं रुकी बल्कि सुंतली को जबरदस्ती वेश्यावृत्ति में उतारने के लिए उसकी ममता को ही मजबूरी बनाया गया. सुंतली के पांच साल के बच्चे को बंधक बना लिया गया और फिर उसे इस नरक को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया.
शातिरों ने सुंतली के पांच साल के बेटे को लोनी में बंधक बना लिया था. ममता के आगे मजबूर सुंतली के पास अब कोई चारा नहीं बचा था. हालांकि, सुंतली की किस्मत अच्छी थी, जो कुछ ऐसा संयोग बना कि एक महीना कोठे की गर्द भरी जिंदगी झेलने के बाद उसे मुक्ति मिल गई.
दरअसल, शातिरों का अति लालच ही सुंतली की अच्छी किस्मत बनकर सामने आया. सुंतली को बेचने वाले दलालों ने अधिक रकम कमाने के चक्कर में नेपाल में सुंतली के घर पर फोन कर उसके बेटे के बदले 20 हजार रुपए की मांग की. साथ ही सुंतली को देह व्यापार में उतर जाने का राज भी खोल दिया.
20 हजार रुपये की मांग करने के लिए दलाल ने लगातार तीन बार नेपाल फोन किया. सुंतली के परिजनों ने देह व्यापार से लड़कियों की मुक्ति के लिए काम कर रही संस्था मैती से संपर्क किया. मैती ने तीनों नंबर के साथ ही सुंतली और उसके बेटे का फोटो मेरठ में कार्यरत संस्था “संकल्प” को मेल कर दिया.
संकल्प की सचिव अतुल शर्मा को दो दिन की खोज के बाद सुंतली के बारे में जानकारी मिली कि वह जरीना के कोठे पर है. ‘संकल्प’ संस्था की मदद से सुंतली को इस दलदल से मुक्त कराया गया. बरामदगी के बाद सुंतली ने बताया कि एक महीना उसे इस धंधे में रखने के बाद एक भी पैसा नहीं दिया गया. साथ ही बेटे को मार डालने की धमकी भी दी गई.
सीशल को भी नौकरी झांसा
कुछ ऐसी ही कहानी है, नेपाल की रहने वाली सीशल की. सीशल को भी नौकरी की मजबूरी ने काम की तलाश में भारत आने को मजबूर किया था और वह यहां के दलाल के द्वारा विछाए गए जाल में फंस गई. यहां आने से पहले उसे तो इस बात का अहसास भी नहीं था कि एक बच्ची की मां को भी ये लोग वेश्यावृत्ति के इस दलदल में धकेल देगें.
उसे नौकरी दिलाने के बहाने मेरठ लाया गया और उसके बाद उसे कोठे पर पहुंचा दिया गया. कोठे पर पहुंचाने के बाद उसकी दो साल की बच्ची गुनगुन को उससे छीन लिया. बच्ची के छीन जाने के बाद सीशल को इस वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर होना पड़ा. सीशल को धमकी दी गई कि अगर वह धंधा नहीं करेगी, तो उसकी बच्ची को मार दिया जाएगा.
मेरठ स्थित, संकल्प संस्था की सचिव अतुल शर्मा बताती हैं कि उसे छुड़ाने के लिए जब वह कोठे पर गईं, तो सीशल चाहकर भी जरीना के कोठे की सीढ़ियां नहीं उतर पा रही थी. एक ओर उसके परिवार के लोग, पुलिस और अतुल शर्मा उसे नीचे उतरने के लिए आवाजें दे रही थीं, तो दूसरी ओर वह लाचारी से जरीना की ओर देख रही थी. उसका मन वहां से भाग जाने का था, लेकिन वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रही थी. आखिर में उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे.
अतुल शर्मा बताती हैं कि वह समझ गई थीं कि कुछ गड़बड़ जरूर है. उन्होंने सीशल का हाथ जोर से पकड़ा और उससे साथ न चलने का कारण पूछा. सीशल ने उनकी हथेलियों को कसकर पकड़ लिया और रोते हुए कहने लगी कि उसकी बेटी को इन लोगों ने बंधक बना रखा है. अगर वह यहां से चली गई, तो ये लोग उसे मार देंगे. अपनी बच्ची को छोड़कर वह यहां से नहीं जा सकती. तब प्रशासन और संस्था के दबाव में जरीना ने सीशल की बच्ची गुनगुन को तो वापिस कर दिया.
मां बनने को करते हैं मजबूर
देश की अनेकों रेड लाइट एरिया में कई महिलाओं को उसके बच्चे को मारने की धमकी देकर वेश्यावृत्ति का पेशा अपनाने को मजबूर किया जाता है. वेश्वावृत्ति में धकेली गईं इन महिलाओं की जिंदगी का एक दुखद पहलू इन्हें जबरन मां बनने पर मजबूर करना भी है. नौकरी की तलाश में निकली कुछ महिलाओं के पास पहले से संतान होती हैं, जिसे बंधक बना लिया जाता है. लेकिन, कोठे पर बेची गईं कुछ कम उम्र की लड़कियों को भी जल्दी मां बनने के लिए विवश किया जाता है.
अतुल शर्मा के मुताबिक इस धंधे में लड़की को जल्द से जल्द गर्भवती करने की कोशिश की जाती है, ताकि संतान होने के बाद उसे कोठे पर रहने को मजबूर किया जा सके. मजबूरी में फंसी एक मां क्या कर सकती है. मां तो मां होती है, बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए कुछ भी कर सकती है. यह तो प्रशासन की लापरवाही है कि वह कुछ नहीं कर पा रहा.
संकल्प संस्था के मताबिक ये लोग सैक्स वर्कर्स के बच्चों को गाजियाबाद के लोनी बॉर्डर में कहीं रखते हैं. उस एरिया तक पहुंचने की इन्होंने बहुत कोशिश की, लेकिन अभी तक उसका पता नहीं चल पाया है. वहां बच्चों की देखरेख करने के लिए एक शख्स को रखा गया है. बच्चे उसे वॉच अंकल के नाम से बुलाते हैं. वहीं, इस मामले में प्रशासन का रवैया भी सुस्त है.
पैसे देकर होती है बच्चों से मुलाकात
मजबूरीवश इस दलदल में फंसी मां को अपने जिगर के टुकड़ों से मिलने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है. वह पैसे देकर ही उनसे मिल पाती हैं. इन महिलाओं के लिए अपने ही बच्चे से एक बार मिलने की कीमत 200 रुपये है. इसके लिए पहले 200 रुपये फीस जुटाती हैं, तब जाकर बच्चे से मिलने की इजाजत मिलती है.
इन महिलाओं के लिए पैसे जुटाना बहुत मुश्किल होता है. चूंकि, इनके शरीर की कीमत तो पहले ही कोठे की मालकिन और दलाल वसूल कर लेते हैं, इसलिए ग्राहकों से मिला पैसा कोठे की मालकिन के पास चला जाता है. इन महिलाओं को उसमें से कुछ भी नही मिल पाता है.
ऐसे में यह इन महिलाओं को अपने ग्राहक से मिली अतिरिक्त रकम, जो एक तरह से बख्शीश के तौर पर मिलती है, को बचाकर रखना पड़ता है. इसके लिए उन्हें अपने ग्राहक को खुश करना पड़ता है, ताकि वे लोग कुछ अतिरिक्त पैसा दे सकें. जब इनके पास कुछ पैसे हो जाते हैं, तो अपने बच्चे से मिलने के लिए वो पैसा कोठे की मालकिन को देती हैं और फिर उन्हें उनके बच्चे से मिलाया जाता है.
अच्छी रिपोर्ट है सच को उघाड़ने वाली।